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________________ १८६ शुभकामना एवं श्रद्धार्चन प्रवर्तक श्री हीरालालजी महाराज के प्रति हीरक चालीसा - मुनि विजय 'विशारद' महिमा मंडित मालव धरती, प्राचीन याद दिलाती है। जिस धरती की गौरव - गाथा, हर-जन वाणी गाती है । हरियाली का सरस सुनहला, शीतलता का राज है। 'मालव माँ का पेट है', यह हर नर की आवाज है। जिसका चप्पा-चप्पा पावन, प्रभु वीर चरण से है। जिस भूमि की ख्याति, उसके डगर-डगर कण-कण से है। (४) जहाँ सभी मत पंथ-ग्रंथ का, देव तुल्य होता सम्मान। हर्ष सहित जहाँ गुणियों का, भक्ति से होता है गुणगान । उसी भूमि की अतुल देन है, जहां हुए हैं ऋषि महान् । साधक तपी हुए हैं जहाँ पर, एक-एक ज्ञानी गुणखान ।। महा मालव का 'मन्दसौर' है, नगर बड़ा ही भाग्यनिधान । धर्मनिष्ठ श्रद्धालु मानव, अर्थवान् रहते विद्वान् । कर्तव्य-पालक श्रावक हैं जहाँ, नाम सुहाना 'लक्ष्मीचंद' । धर्मपत्नी श्री हगामबाई ने, पाया सुत छाया आनन्द । शुक्ल पक्ष में जन्म हुआ तब, नाम दिया है 'हीरालाल'। जिसको पाकर परिवार हो गया, धन्य हो गया निहाल । मात-पिता के संस्कारों से, हीरा हो गये संस्कारित । शुभ शिक्षा पाई है जिनने, जैन धर्म के आधारित ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012006
Book TitleMunidwaya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni, Shreechand Surana
PublisherRamesh Jain Sahitya Prakashan Mandir Javra MP
Publication Year1977
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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