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________________ १८६ Jain Education International मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ कस्तूर गुण- ज्ञान मुनि विजय 'विशारद' कस्तूर गुरुवर प्यारे हैं, जिन शासन की शान । करते हैं अभिनन्दन, अरु हम गाते गुण गान ॥ टेर ॥ 'फूली' माता के प्यारे दुलारे । 'रतिचंद' जी के कुल उजियारे ॥ सौम्य सुहाने गुणिवर हो समता के निधान ॥ १ ॥ परम सौभागी । ज्ञानी - महामुनि सम्पर्क पा कई आतम जागी ॥ धन्य पिता-माता है, अरु धन्य ज्ञान गुणखान ॥२॥ मालव के महा रत्न कहाते । कंकर को शंकर भी बनाते ॥ 'सागर वर गंभीरा' करते हैं जग उत्थान ||३|| जैनागम के ज्ञाता गुरुवर । दीनों के रक्षक करुणा के सागर ॥ अहो ! मालव के भूषण, अहो मालव निधि महान ||४|| मधुरता का झरणा वचनों में झरता । हर-नर-जन को पावन करता ॥ हर्षित होकर वचनों का करते हैं जो पान ||५|| शुभ पद को तुम भूषित करते । विषैले मानस में भी अमृत भरते ॥ 'उपाध्याय' पद पाये अहो ! श्रमण संघ के प्राण ॥६॥ मोती । अद्भुत संयमी सच्चे जीवन में भर दो शुभ ज्योती ॥ उज्ज्वल मार्ग बनेगा, अपनाये जो सज्ञान ॥ O For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012006
Book TitleMunidwaya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni, Shreechand Surana
PublisherRamesh Jain Sahitya Prakashan Mandir Javra MP
Publication Year1977
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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