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________________ (१) चमक दमक गुण हीरे जैसे, उच्चाचारी जिनमें भरे कमाल । मंगलकारी, "मुनिश्री हीरालाल " ॥ (३) पौष सुदी इक, उगनीसो का, चौंसठ सम्वत लेकर जन्म आपने जग में, " मन्दसौर " श्रद्धा-सुमनांजलि कवि श्री चन्दनमुनिजी महाराज (पंजाबी) प्रायः बाई, भाई वचन Jain Education International (५) पढ़ने-लिखने खेल - कूद में, पाये ॥ पन्द्रह वर्ष बिताये । “लक्ष्मीचन्द " मुनीश्वरजी के, दर्शन पावन (७) गोरा-काला अदना आला, बूढ़ा था या बाला । झूम उठा था "रामपुरा" वह, उत्सव देख निराला ॥ (ह) - आया । चमकाया || शास्त्रों का स्वाध्याय सतत ही, करते को दुखदायी, कभी न कहते ॥ शुभकामना एवं आशीर्वचन रहते । (२) हैं " जैनागम तत्त्व विशारद", सब के जो सुखकारी । पूज्य " प्रवर्तक" पद के धारी, वाणी अमृत प्यारी ॥ (४) "लक्ष्मीचन्द" पिताजी प्यारे, १७३ मात "हगामकुंवर जी" । ओसवाल के दुगड़ गोत्र के, आप दिव्य दिनकर जी ॥ (६) मात-पिता से आज्ञा लेकर, उनसे दीक्षा धारी । उगनीसौ उनयासी सम्वत्, माघ सुदी त्रय प्यारी ॥ (5) हिन्दी, प्राकृत, संस्कृत सीखी, सीखी है गहरा ज्ञान आगमों वाला, चाह न जिसकी आती ॥ (१०) भोजन, भाषन, शयन स्वल्प है, चारों स्वल्प कषाय । ऐसे महामुनीश्वरों के गुण, कोई कैसे गाय ॥ (११) चरण कमल में श्रद्धा के दो, करके सुमन समर्पण | "चन्दनमुनि " पंजाबी करता, वन्दन औ अभिनन्दन ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012006
Book TitleMunidwaya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni, Shreechand Surana
PublisherRamesh Jain Sahitya Prakashan Mandir Javra MP
Publication Year1977
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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