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________________ १७२ मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ अभिनन्दन - एकादशी कवि श्री चन्दनमुनिजी महाराज (पंजाबी) (१) मधुर महक कस्तूरी-सी जो, जग को देने वाला । " श्री कस्तूरचन्दजी" कैसा, सुन्दर नाम (३) Jain Education International निराला !! पिता सेठ " श्री रतीचन्दजी", माता "फूली बाई" । ओसवाल - चपलोत - गोत की, प्रगटाई पुण्याई ॥ (५) उगनीसौ बासठ - कातिक की, शुक्ला तेरस धूमधाम से " रामपुरा " बने महाव्रत (७) प्यारी । में, धारी ॥ दिव्य देह मुखमण्डल मालिकमुद्रा मुस्काती पण्डित प्राकृत, संस्कृत, हिन्दीके हैं गुजराती के ॥ (ह) " मालवरत्न" कहाते हैं यों, मालव प्रान्त जगाया । वैसे दया-धर्म का झण्डा, जगह-जगह लहराया || के । (२) जन्म जेठ की पहली तेरस, उगनीसौ उनचासा । शहर "जावरा" जनता की जब, पूर्ण हुई अभिलाषा ॥ (४) प्यारा । " खूबचन्द" आचार्य वर्य - सा, पाकर गुरुवर दुनिया के आराम धाम से, इक दिन किया किनारा | (६) आगम-ज्ञाता बने, बने हैंज्योतिष के भी ज्ञाता । दम, शम, संयम गहन गुणों का, पार नहीं है आता ॥ (5) त्यागी औ वैरागी सच्चे, समता - सत्य - पुजारी । सन्त आप सा विरला होगा, कोई पर उपकारी ॥ (१०) ध्यानी अमृतवाणी, शास्त्रों के व्याख्यानी । मिलना मुश्किल जगतीतल पर, मुनिवर उनका सानी ॥ ज्ञानी (११) अर्पन | अर्द्ध खिले दो सुमन श्रद्धा के, करके चरणन करता है अभिनन्दन वन्दन, पंजाबी “मुनि चन्दन" | For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012006
Book TitleMunidwaya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni, Shreechand Surana
PublisherRamesh Jain Sahitya Prakashan Mandir Javra MP
Publication Year1977
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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