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________________ सन्देश १५६ संतों का अटल विश्वास है, कि जिस तरह दिग्दर्शक यन्त्र की सूची या शुभ सदा उत्तर की ओर रहती है, उसी प्रकार आत्मोन्मुख हृदय कभी भवसागर की उत्ताल तरंगों में नहीं पड़ सकता। उनके आध्यात्मिक जीवन कामना का चरित्रांकन संकेत करता है कि वे सत्य के देवदूत हैं। संत-वाणी कभी सत्य, धर्म और शास्त्र के मूल सिद्धान्तों की न तो उपेक्षा करती है, न विरोध ! सचमुच, संत-वाणी माधुर्य और स्वारस्य का अप्रतिम प्रतीक बनकर समूचे देश पर आकाश की भांति छायी है। और फिर यह वही संतवाणी है जो कि वास्तव में आत्मविकास के साथ-साथ लोक विकास के लिए क्रियात्मक साधन है। ऊँच-नीच के बन्धन झूठे। प्रेम-सुधा के बोल अनूठे ॥ संत-जीवन संकीर्ण दृष्टि, जात-पात के भेदभाव और अहम् के अंधकार में भटकने वालों के लिए एक चेतना है, प्रेरणा है। प्रसिद्ध मराठी संतकवि श्री तुकारामजी अपने एक अभंग में सहज सुन्दर भाव से कहते हैं बोले तैसा चालें। त्याची वंदावी पाऊलें। तोचि साधु ओलखावा । देव तेथेंचि जाणावा ।। अपने उपदेशों पर स्वयं चलकर हमारे लिए एक आदर्श प्रस्तुत करने वाले संत-सज्जन आज भी करोड़ों भारतीयों के मन को भक्ति, विश्वबन्धुत्व और प्रेम-सुधा से प्रेरित कर रहे हैं। उन्होंने राजा से लेकर रंक तक सभी को प्रेम का, सत्य और अहिंसा का एक ऐसा महान् सन्देश दिया, जिसमें सामाजिक चेतना एवम् समता का अमर अंकुर है । यही अंकुर पू० कस्तूरचन्दजी महाराज साहब और पू० हीरालालजी महाराज साहब के रूप में एक ऐसे भविष्य के लिए कार्यरत है, जो हमारे गौरवपूर्ण इतिहास के लिए उपयुक्त हों । दोनों संतों की ये विशेषताएँ रही हैं। ये दोनों ही मानवता के महान् सेवक और मालवधरा के दो जगमगाते रत्न हैं। उनके विचार मानसिक चेतना के लिए भी आज अनेकों को आकर्षित कर रहे हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012006
Book TitleMunidwaya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni, Shreechand Surana
PublisherRamesh Jain Sahitya Prakashan Mandir Javra MP
Publication Year1977
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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