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________________ १४४ मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ संदेश बेजोड़ कर्मठ व्यक्तित्व संयमी संस्कृति ही वास्तव में संत-साधना संस्कृति है। जिसे सर्वोत्कृष्ट संस्कृति के रूप में सम्बोधित किया जा सकता है। जो जीवनव्यक्तित्व को संवार-संस्कार दे एवं अखंड आनन्द की अनुभूतियों के वैभव से परिपूर्ण करदे, बस ! वही संस्कृति श्रेष्ठता की अधिकारी है। इसकी अविच्छिन्न धारा अभी तक श्रेष्ठ संतों-मुनियों की सक्षमता से चली आई है और भविष्य के अनन्त काल तक ज्यों की त्यों प्रवाहित रहेगी। इस संयम-साधना की सांस्कृतिक धरोहर के रूप में आज भी हमारे सम्मुख उपाध्याय, मालवरत्न, ज्योतिर्विद, महासंतस्थविर पदविभूषित श्रद्धेय श्री कस्तूरचन्दजी महाराज एक जीवंत ज्योति विराजित हैं । जिनकी संयम साधना की पर्याय आज के भौतिक युग के लिये आश्चर्यपूर्ण चमत्कृति है। वाणी एवं विचार स्फटिक सदृश निर्मल तथा हर पल माधुर्यता से ओत-प्रोत है । करुणा एवं वात्सल्यता के आप अक्षय भंडार हैं । आपको असहाय, दीन-दुःखी भाई-बहिनों एवं बच्चों का आत्मीय सहायक या प्रतिपालक भी कहा जाये, तो किंचित् भी अतिशयोक्ति नहीं होगी। समाज का ऐसा वर्ग भी है, जो कि आप से निरन्तर ऐसी शुभ प्रेरणा पाकर साधर्मी-सेवा करके स्वयं को कृतार्थ मानता है। साधर्मी-सेवा की आप एक जीवित संस्था ही तो हैं। जहां अभेद-भाव रूप से, यशोकामना से रहित, बिना शोर किये अपने कर्मठ कार्यक्रम में संलग्न हैं । ऐसी मिसाल दुर्लभ रूप से ही मिला करती है। ज्योतिष-शास्त्र के आप प्रकांड विद्वान् हैं। जैनागमिक भूगोल एवं खगोलीय रहस्यों की गुत्थियों को जब आप आज के विज्ञान के संदर्भ में सुलझाते हैं, तो एकबारगी श्रोता मनोमुग्ध से हो जाते हैं। यदि वास्तव में देखा जाये, तो आपके अपने सुदीर्घ जीवन की अनुभूति से सम्पन्न एवं शताधिक वर्षों की पारंपरिक विरासत से प्राप्त ज्ञान-विज्ञान की साकार वैभव विभूति हैं। आज हमारे ऐसे पुण्यवान संत प्रवर ज्योतिर्धर उपाध्याय श्री कस्तूरचन्दजी महाराज की पावन सेवा में भावमयी श्रद्धा के साथ अभिनन्दन एवं अभिवन्दन ! सुजानमल चाणोदिया बापूलाल बोथरा अध्यक्ष: मंत्री: श्री जैन दिवाकरजी महाराज का श्रावक संघ नीमचौक : रतलाम (म० प्र०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012006
Book TitleMunidwaya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni, Shreechand Surana
PublisherRamesh Jain Sahitya Prakashan Mandir Javra MP
Publication Year1977
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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