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________________ सन्देश १३६ सवंदना भावाञ्जलि शुभ गुरुदेव ज्योतिषाचार्य शासन सम्राट मालवरत्न श्री कस्तूरचन्दजी कामना महाराज एवं प्रवर्तक शास्त्रज्ञ पं० मुनि श्री हीरालालजी महाराज के - अनुपम व्यक्तित्व एवं अनुकरणीय कृतित्व से जैन समाज अहर्निश धन्य होता आया है तथा इनके सद्गुणों की सुवास से इनका अनुयायी वर्ग प्रतिपल सुवासित एवं गौरवान्वित हो रहा है। इनके सुकोमल हृदय में जन-जन को आकर्षित करने एवं शांति स्रोत प्रवाहित करने की शक्ति विद्यमान है जो इनकी बहुमुखी प्रतिभा के प्रतीक अनेक धार्मिक कार्यों से सुशोभित है। माँ भारती के इन दो वरद पुत्रों ने निज जोवन का प्रत्येक क्षण 'परहिताय, परसुखाय' में लगाकर अज्ञानान्धकार को मूलतः मिटा कर ज्ञान का आलोक फैलाया है। इनका सात्विक तपःपूत जीवन, वीतरागमुद्रा, भव्य विचारणा जन्मजन्मांतरों की अमूल्य धरोहर है । हमारे ये दोनों ही गुरुदेव जीवन कला के सच्चे कलाकार, अहिंसा के परम उपासक, करुणा के महासागर, समाज के सात्विक सुधारक एवं योग्यतम धर्मनेता हैं। जब-जब भी समाज में कटुता, वैमनस्य और द्वेष का विष पनपा इन दिव्य भव्य सन्तद्वय ने महादेव बनकर इसका पान किया और समाज की विघटन से रक्षा की। सुखद स्मृतियों के कारण आज भी दोनों महान विभूतियों का जीवन प्रेरक एवं ज्योतिर्मय है। हमारे शासन सम्राट एवं प्रवर्तक का भक्तियोग, ज्ञानयोग एवं कर्मयोग का स्रोत सतत जीवन पथ पर प्रवाहमान है । इनके ज्ञान की मधुर स्वर लहरी में आज भी वही ओज विद्यमान है जो पूर्व में था। शासनदेव से करबद्ध प्रार्थना है कि ये ज्ञान के निर्मल प्रकाश स्तम्भ सहस्रों वर्षों तक अपने तेज से अज्ञानान्धकार में भटकते हुए जनमानस को प्रभावित करते रहें और मुमुक्षुओं को मोक्षगामी बनने का पथ-प्रशस्त करते रहें। -चांदमल मारू (मंदसौर) (प्रधानमंत्री-अ० भा० श्वे० स्था० जैन श्रावक संघ, जनकपुरा, मंदसौर) - जैनधर्म त्याग एवं करुणा की सुदृढ़ नींव पर टिका हुआ है। कल-कल बहती हुई गंगा की पवित्र धारा के समान जिस व्यक्ति का हृदय दया एवं करुणा से ओत-प्रोत होता है वही मानव-जीवन का विकास कर सकता है । सन्त जीवन मक्खन के समान दयार्द्र होता है। अग्नि के प्रसंग से मक्खन पिघल जाता है। उसी प्रकार दयालु व्यक्ति भी दीन-दुःखी, अनाथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012006
Book TitleMunidwaya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni, Shreechand Surana
PublisherRamesh Jain Sahitya Prakashan Mandir Javra MP
Publication Year1977
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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