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________________ मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ प्रत्येक रविवार को एक विशिष्ट व्याख्यान का आयोजन भी हुआ करता था। जिससे चारों सम्प्रदाय के हजारों जैन भाइयों के अतिरिक्त इतर जन भी काफी उत्साह पूर्वक लाभान्वित हुए। जनता की एक ही आवाज थी कि-ऐसे सरल-स्वभावी शान्त प्रकृति के स्वामी, विद्वान् मुनि यदा-कदा ही यहाँ आया करते हैं। मुनियों के शुभागमन से अनेक रचनात्मक कार्यों को जीवन दान मिला। गुजराती, मारवाड़ी एवं पंजाबी अर्थात-तीनों संघों की नींव मजबूत हई, बंगाल-बिहार प्रान्तीय कान्फ्रन्स शाखा का भी श्रीगणेश, भारी मानव-मेदिनी के बीच स्नेह-सम्मेलन, क्षमापना-दिवस, वीर निर्वाणोत्सव, पूज्य खूबचन्द जयन्ती समारोह, लोकाशाह एवं दिवाकर जयन्ती समारोह आदि धार्मिकोत्सव हमारे चरित्रनायक श्री के सान्निध्य में ही सम्पन्न हुए। १० जनवरी, ५४ को २७ पोलोक स्ट्रीट जैनस्थानक में पण्डितप्रवर श्री हीरालाल जी महाराज आदि मुनि-मण्डल के समीप एक विशाल जैन संस्कृति सम्मेलन मनाया गया। इस सम्मेलन का सभापतित्व बंगाल के माननीय राज्यपाल एच० सी० मुखर्जी कर रहे थे। इस सम्मेलन में अनेक इतिहासकार एवं पुरातत्त्वविज्ञों ने जैनधर्म एवं संस्कृति पर प्रभावशाली भाषण दिये। सम्मेलन में उपस्थित जनता के अतिरिक्त नेपाल के प्रधान मंत्री श्री मातृकाप्रसाद कोइराला, डा० कालिदास नाग तथा बौद्ध भिक्षु श्री जगदीश काश्यप भी थे। सभी वक्ताओं के प्रासंगिक भाषण हुए। सं० २०२१ का जोधपुर वर्षावास स्थानीय संघ के अत्याग्रह पर चरित्रनायकजी आदि मुनि-मण्डल का विक्रम सं० २०२१ का चौमासा जोधपुर होना निश्चित हुआ। इस वर्षावास को काफी महत्वपूर्ण एवं ऐतिहासिक चातुर्मास की संज्ञा से सम्बोधित करने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। उन दिनों जोधपुर एवं आस-पास के उपनगरों में चरित्रनायक प्रवर्तक श्री हीरालालजी महाराज, प्रखर वक्ता श्री लाभचन्दजी महाराज, मधुर वक्ता श्री ईश्वर मुनि जी महाराज एवं महासती श्री कमलावतीजी आदि के प्रभावशील प्रवचनों की जहां-तहां भारी धूम रही। जनता के निवेदनों पर हाईस्कूलों, कॉलेजों एवं स्थानीय कारागृह में कई बार शानदार ढंग से व्याख्यानों के आयोजन सफल हुए। चारों ओर हजारों नर-नारियों के उमड़ते हुए दृश्य को देखकर सभी आश्चर्यचकित थे। सिंह पोल धर्म-स्थान का विशाल मण्डप, जिसमें पर्युषण पर्व के मंगल दिनों में बढ़ते हुए जन-प्रवाह का समावेश नहीं होता देखकर स्थानीय कार्य-कर्ताओं को जनता की सुविधा के लिए स्कूल और धर्म-स्थानक की दीवार भी हटानी पड़ी तब कहीं जाकर ठीक ढंग से जनता बैठ सकी। कई भावुक नर-नारी आपश्री के मधुर स्वभाव से प्रभावित होकर धर्माराधना में स्थिर हुए। इस चातुर्मास में अत्यधिक तपाराधना भी हुई । एक साथ सैकड़ों अट्ठाइयां-तेले-बेले एवं बड़ी-बड़ी तपस्याएँ भी....। मुनियों की प्रेरणा से कई रचनात्मक योजनाओं को जीवनदान भी मिला एवं कई संस्थाओं को मार्गदर्शन भी। इस ऐतिहासिक वर्षावास की मधुर स्मृतियां आज भी जोधपुर निवासियों के मुंहजबानी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012006
Book TitleMunidwaya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni, Shreechand Surana
PublisherRamesh Jain Sahitya Prakashan Mandir Javra MP
Publication Year1977
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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