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________________ ८२ मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ श्रमण संघ की तिथि निर्णायक समिति के आप सर्वाधिक सम्माननीय सदस्य हैं । आपका ज्योतिष विषयक ज्ञान प्रगाढ़ व प्रकाण्ड है । इस विषय में आपका मन्तव्य विशेष समादरणीय होता है । तिथि निर्णायक समिति के सदस्य के रूप में भी आपने श्रमण संघ की बहुत सेवा की है। मैं, इस प्रसंग पर उनकी सेवा में अपनी विनम्र भावांजलि अर्पित करता हूँ और कामना करता हूँ कि आप युग-युगों तक जिन शासन की सेवा और प्रभावना करते रहें । वंदनीय व्यक्तित्व [1] प्रवर्तक श्री हीरालालजी महाराज भारत का कोई भी ऐसा स्थानकवासी जैन नहीं होगा, जो मालवरत्न महास्थविरपद विभूषित श्रद्धेय उपाध्याय श्री कस्तूरचन्दजी महाराज साहब के बहुमुखी व्यक्तित्व से परिचित नहीं हो । आपका उदीयमान व्यक्तित्व इन दिनों श्रमण संघ के 'उपाध्याय' पद को सुशोभित कर रहा है । आपके विचारों में बड़ी उदारता एवं नई-पुरानी परम्परा के सुन्दर समन्वय का संगम परिलक्षित होता है । आगम-वाङमय का चिंतन और मनन भी आपका गहन गंभीर रहा है। मेरी दृष्टि में आपके विचार और आचार की उच्चता हिम शिखर से भी ऊँची और गांभीर्य सागर से भी अधिक रहा है। वाणी में माधुर्य है, तेज है और ओज है । यह साधक भी आपकी ही शीतल छाया में फला-फूला एवं रत्नत्रय की अभिवृद्धि कर पाया है । मैं आपका परिचय क्या करवाऊँ । प्रस्तुत अभिनन्दन ग्रन्थ का एक-एक पृष्ठ आपके गौरव गरिमा-महिमा की अभिव्यक्ति कर रहा है । मैं आपका हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ । आपकी ओर से सदा चतुर्विध संघ को मार्गदर्शन मिलता रहे यही मेरी शुभकामना है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012006
Book TitleMunidwaya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni, Shreechand Surana
PublisherRamesh Jain Sahitya Prakashan Mandir Javra MP
Publication Year1977
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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