SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अभिनन्दन-पुष्प ७५ सन्त-संस्कृति के पावन प्रतीक [] महासती जनार्या श्री सुशीलाकुमारी 'कल्पना' मालवभूमि पर अनेकानेक महान् पुरुषों का आविर्भाव हुआ है। मालव प्रान्त को गुण-गरिमा में एक लोक कवि की यह पंक्तियाँ भी उल्लेखनीय हैं मालव भूमि गहन गंभीर ! डग-डग रोटी पग-पग नीर !! इसी शस्य श्यामला मालवभूमि के रम्य नगर जावरा में चपलोत वंश में जन्म लेकर मालव प्रदेश को गौरवान्वित किया वे हैं-मालवरत्न उपाध्याय महान् प्रतिभा के धनी पूज्य गुरुदेव श्री कस्तूरचन्दजी महाराज । आपश्री का विराट व्यक्तित्व कुछ शब्दों में बाँधा नहीं जा सकता। आपकी स्मरण शक्ति बड़ी विलक्षण है। वर्तमान में आपके सदृश्य शास्त्रवेत्ता एवं ज्योतिविद् कम ही दृग्गत होते हैं। महामहिम पूज्य गुरुदेवश्री के दर्शन करने का हमें कई बार सौभाग्य प्राप्त हुआ। आपश्री की छत्रछाया प्राप्त करने वाला मानव अपना अहोभाग्य समझता है । आपकी सौम्य एवं सुडौल आकृति-प्रकृति एवं विराट मनोवृत्ति में साक्षात् सन्तजीवन के दर्शन होते हैं। आप करुणा के सागर हैं। जब आपके समक्ष कोई दीन-दुखी या समस्या-पीड़ित व्यक्ति सम्पर्क में आता है तो आपका कोमल हृदय पसीज जाता है एवं करुणा की हिलोरें उसके अनुताप को शान्त कर देती हैं। आपके ज्ञान की अनुपम ज्योति से मुझे मार्गदर्शन मिला है एवं आपके त्यागमय संयमी जीवन से प्रकाश प्राप्त कर मैं अपने को धन्य मान रही हूँ। आप परम सौम्य, दूरदर्शी, मिष्टभाषी एवं मिलनसार हैं। आपके जीवन की महनीयता में ही समाज की संजीवनी रही हुई है। मैं आशा करती हूँ कि कस्तूरी सुगन्ध की तरह आपके जीवन की निर्मल सुरभि युग-युगों तक जन-मानस को सुरभित करती रहेगी। hoy cho 15 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012006
Book TitleMunidwaya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni, Shreechand Surana
PublisherRamesh Jain Sahitya Prakashan Mandir Javra MP
Publication Year1977
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy