SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 64
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १ / संस्मरण : आदराञ्जलि : २७ जो सदा चमकते रहेंगे ? • पं० सागरमल जैन, विदिशा - जैन साहित्य, इतिहासकी श्रीवृद्धि करनेवाले भी अपने पीछे जमे छोड़ गये वह धरोहह आज उन्हें जीवित रखे हुए हैं, उन्हीं में से एक हैं डॉ. महेन्द्र कुमारजी न्यायाचार्य । ४७ वर्ष के जीवन कालमें जितना दे गये उस धरोहरको ये समाज-शास्त्र भण्डार इतिहासके रूपमें सदा स्मरण करती रहेगी, पूज्य उमास्वामी एवं अकलंकदेवके श्रीचरणोंमें जिनने भी श्रद्धा सुमन अर्पित किये हैं, वे स्वयं ही अमर हो गये। इस शताब्दीमें जैनदर्शन पर जितना शोधपूर्ण साहित्य जिनके द्वारा दिया गया है उनमें प्रमखतासे न्यायाचार्य डा. महेन्द्रकुमारजी का नाम सर्वोपरि है । इस खोये हुये महा विद्वान्को पुनः समाजमें लानेका श्रेय परमपूज्य उपाध्याय मुनिवर ज्ञानसागरजी महाराजश्री को है। मैं अपने जीवनकालमें उनके दर्शन नहीं कर पाया किन्तु उनके द्वारा दिये गये दर्शन शास्त्रोंका सरलतासे अध्ययन करनेका अवसर अवश्य मिला । ऐसे महामानवके प्रति श्रद्धा सुमन अर्पित करते समय मैं अपनेको धन्य मान रहा हूँ। न्यायशास्त्र के अद्वितीय विद्वान् • सिंघई सुमेरचन्द्र, जबलपुर पंजी बुंदेलखण्डकी महान् विभूति थे। उन्होंने न्यायविद्याके विषयपर पाण्डित्यपूर्ण ज्ञान प्राप्त किया था और अपनी लेखनीसे जिन ग्रंथोंका सम्पादन किया था वह अभूतपूर्व था। उनकी तकणा शक्ति इतनी प्रबल थी कि बड़े-बड़े विद्वान् भी लोहा मानते थे। ऐसे मनीषीके प्रति अपनी श्रद्धांजलि समर्पित करता हूँ। सादा जीवन और उच्च विचार के धनी • श्री महेन्द्रकुमार मानव, छतरपुर ___ यह मेरा सौभाग्य रहा है कि मुझे अपने जीवन में विद्वानों, महापुरुषों, राजनेताओं, त्यागिरमें एवं तपस्वियों से मिलने का अवसर मिला है। पं० महेन्द्रकुमारजीसे भेंट वाराणसीमें उनके घर पर ही हुई थी। जैन न्यायपर पंडितजीके अवदानकी तुलना किसी अन्यसे नहीं की जा सकती। वह अतुलनीय है। जैन न्यायपर पण्डितजी ने जिन ग्रन्थोंकी रचना की है उन्हें देखकर यह सहज विश्वास नहीं होता कि यह समग्र एक विद्वानका कृतित्व है। प्रत्येक व्यक्तिके साथ घर गृहस्थीकी झंझटें तो रहती ही हैं इन सबके बावजद पण्डित जीने जैन न्यायके अनुशीलनके लिए कितने रात्रि जागरण किए होंगे इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। जैन विद्याके अध्ययनके लिए पूज्य वर्णीजीने वाराणसीमें स्याद्वाद विद्यालय न खोला होता तो इधर वर्षों में जैन विद्याकी जितनी प्रगति हुई है वह न हुई होती। जैन विद्याको आगे बढ़ाने में बुन्देलखण्डके छात्रोंने जो योगदान किया है वह भी स्मरणीय है। पूरे भारतकी जैन समाजके लिए बग्देलखण्डने जितने जैन पण्डित दिए हैं उनकी संख्या प्रचुर है। उनमें पं० महेन्द्रकुमारका नाम शीर्षपर है। विद्वत्ताके साथ पण्डितजी को विनम्रता स्पृहणीय थी। अपनी मिट्टीसे उनको बहत कगाव था। बन्देलखण्डका कोई शोधार्थी उनके पास पहुँच जाता तो पण्डितजी अपने स्नेहसे उसे अभिसिंचित कर देते। पण्डितजी सादा जीवन उच्च विचारमें विश्वास रखते थे। ऐसे महामनाके प्रति विनम्र श्रदाञ्जलि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012005
Book TitleMahendrakumar Jain Shastri Nyayacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya, Hiralal Shastri
PublisherMahendrakumar Jain Nyayacharya Smruti Granth Prakashan Samiti Damoh MP
Publication Year1996
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy