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________________ वरिष्ठ एवं गरिष्ठ साहित्यसेवी • श्री शिवचरनलाल जैन, मैनपुरी १ / संस्मरण : आदराञ्जलि : २५ डॉ० पं० महेन्द्रकुमार जैन न्यायाचार्य जैनदर्शन जगत्की महानतम विभूतियोंमें एक थे । कथितरूप से वर्तमान लौकिक अन्यायपूर्ण युगमें न्याय दर्शन तो न्यूनतम रूपसे आध्यात्मिक क्षेत्रमें विद्यमान है ही । इस न्याय दीपके प्रकाशमें जीवनपथ के लिए संबल मिलता है । जैन-न्याय दीपकी भूमिका में पं० महेन्द्रकुमार न्यायाचायने बत्ती के रूप में कार्य किया । बत्तीकी तरह वे सरस्वती माँके वैभव-प्रसार के लिए जले, तीव्र गतिसे चले और मात्र ४७ वर्षकी अल्पायुमें इस नश्वर विश्वसे चले गये और सूक्ष्म विषय भी मेधावी जन-समुदायको आकर्षित करने लगा दर्शनको यथोचित सम्मान दिलानेका उन्होंने भगीरथ प्रयत्न किया। महान् विद्याशरीरी पुरोधा युगों-युगों तक स्मरणीय रहेगा । । । इतना काम कर गये कि न्यायका रूक्ष जेनेतर दार्शनिक वर्तमान जगत् में जैनजैन वौद्ध विद्याका एकाकी संगम यह विश्वविद्यालयीय क्षेत्रोंमें वे अग्रणी कार्यरत रहे । न्याय एवं दर्शनके तुलनात्मक अध्ययनके वे प्रचारक-प्रसारक विद्यापुंज थे । उनका व्यक्तित्व बहुआयामी था । लेखन, सम्पादन, अध्ययन, अध्यापन, टीकाटिप्पण आदि सभी क्षेत्रों में उनकी पैठ थी। 'जैनदर्शन' उनकी अमर मौलिक कृति है । पं० कैलाशचन्द्रजी का जैन-न्याय और इनका 'जैनदर्शन' दोनों चन्द्र-सूर्य की भाँति दार्शनिक आकाशमें जाज्वल्यमान प्रकाश पुंज हैं। Jain Education International मुझे उनके दर्शनका सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ माध्यम से 'कृति शरीर' रूपमें मेरे सामने विद्यमान हैं। कि हम भी उनके समान ही परिश्रम कर उच्चसे उच्च ज्ञान-पद प्राप्त करें । निर्लिप्त साधक संत • श्री सत्यंधरकुमार सेठी, उज्जैन मैं आरम्भसे हो माननीय डॉ० साहब के जीवनसे और उनको महान् साहित्यिक सेवाओंसे प्रभावित हूँ। कई बार मैंने उनके प्रत्यक्ष दर्शन भी किये हैं। उनके विचारोंमें जैनदर्शन और साहित्यके प्रति उच्च कोटकी भावनाएँ थीं जिनको सुनकर मानव एक क्षण में जैन जीवनके प्रति आकर्षिक हुए बिना नहीं रह सकता था । वे एक उच्च कोटिके आदर्श अध्येता विद्वान् थे। जिसका स्पष्ट उदाहरण है उनके छोटेसे जीवनमें की गई माँ जिनवाणीकी सेवायं । वे न्याय शास्त्र के तो अद्वितीय विद्वान् थे ही लेकिन जैनदर्शनके अन्य विषयों पर भी उनके अध्ययन पर गहरा अधिकार था। जिसका स्पष्ट उदाहरण है उनके द्वारा सम्पादितमौलिक कृतियाँ | किन्तु ऐसा लगता है कि अपनी अमर कृतियोंके उनके प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि यह होगी माननीय डॉ० साहब साहित्य सेवामें जितने संलग्न थे इसका स्पष्ट प्रमाण यही है कि छोटेसे जीवनमें उन्होंने अनेक ग्रन्थोंका संपादन करके अपने व्यक्तित्वका परिचय दिया । सच कहा जाय तो वे गृहस्थ जीवन में भी एक साधक पुरुष की तरह उनका जीवन था। उनके जीवनमें कई बाधाएँ आईं। फिर भी वे एक अटल साधककी तरह साहित्यिक सेवामें जुटे रहे । उनका जीवन निर्लिप्त साधक संतकी तरह था । ऐसे महामानव एवं आदर्श विद्वान्‌के प्रति हम जो भी श्रद्धा सुमन अर्पित करें। वे भी अति अल्प हैं । मेरी तो यही भावना है कि उन महाविद्वान् के पथपर चलते हुए हम भी उन्हीं के अनुरूप जैनधर्म और जैन साहित्यके प्रचार और प्रसार में अपना जीवन अर्पित करते रहें । १-४ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012005
Book TitleMahendrakumar Jain Shastri Nyayacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya, Hiralal Shastri
PublisherMahendrakumar Jain Nyayacharya Smruti Granth Prakashan Samiti Damoh MP
Publication Year1996
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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