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________________ ४ / विशिष्ट निबन्ध : २५१ तार्किकशिरोमणि, परमागमप्रवीण, नवनवतिमहामहावादिविजेता आदि विशेषणोंसे अलंकृत किया है। ये विशेषण उनकी अहम्मन्यताको खूब अच्छी तरह प्रकट करते हैं। वे कट्टर तो थे ही, असहिष्णु भी बहुत ज्यादा थे । अन्य मतोंका खण्डन और विरोध तो औरोंने भी किया है, परन्तु इन्होंने तो खण्डनके साथ बुरी तरह गालियाँ भी दी हैं । सबसे ज्यादा आक्रमण इन्होंने मूर्तिपूजा न करनेवाले लोंकागच्छ (ढूंढ़ियों) पर किया है । ...." अधिकतर टीकाग्रन्थ ही श्रुतसागरने रचे हैं, परन्तु उन टीकाओंमें मूल ग्रन्थकर्ताके अभिप्रायोंकी अपेक्षा उन्होंने अपने अभिप्रायोंको ही प्रधानता दी है। दर्शनपाहुडकी २४वीं गाथाकी टीकामें उन्होंने जो अपवाद वेषकी व्याख्या को है, वह यही बतलाती है। वे कहते हैं कि दिगम्बर मुनि चर्याके समय चटाई आदिसे अपने नग्नत्वकी ढाँक लेता है। परन्तु यह उनका खुदका हो अभिप्राय है, मूलका नहीं। इसी तरह तत्त्वार्थटीका ( संयमश्रुतप्रतिसेवनादि सूत्रकी टीका ) में जो द्रव्यलिंगी मुनिको कम्बलादि ग्रहणका विधान किया है वह भी उन्हींका अभिप्राय है, मूल ग्रन्थकर्ताका नहीं। श्रुतसागरके ग्रन्थ १-यशस्तिलकचन्द्रिका-आचार्य सोमदेवके प्रसिद्ध यशस्तिलक चम्पूकी यह टीका है और निर्णयसागर प्रेसकी काव्यमालामें प्रकाशित हो चुकी है। यह अपूर्ण है। पांचवें आश्वासके थोड़ेसे अंशकी टीका नहीं है । जान पड़ता है, यही उनकी अन्तिम रचना है। इसको प्रतियाँ अन्य अनेक भण्डारोंमें उपलब्ध हैं, परन्तु सभी अपूर्ण हैं। २-तत्त्वार्थवृत्ति-यह श्रुतसागरटीकाके नामसे अधिक प्रसिद्ध है। इसकी एक प्रति बम्बईके ऐ० पन्नालाल सरस्वती भवनमें मौजूद है जो वि० सं० १८४२ की लिखी हुई है। श्लोकसंख्या नौ हजार है। इसकी एक भाषावनिका भी हो चुकी है। ३-तत्त्वत्रयप्रकाशिका-श्री शुभचन्द्राचार्यके ज्ञानार्णव या योगप्रदीपके अन्तर्गत जो गद्यभाग है, यह उसीकी टीका है। इसकी एक प्रति स्व० सेठ माणिकचन्द्रजीके ग्रन्थसंग्रहमें है। ४-जिनसहस्रनामटीका-यह पं० आशाधरकृत सहस्रनामको विस्तृत टीका है। इसको भी एक प्रति उक्त सेठजीके ग्रन्थसंग्रहमें है। पं० आशाधरने अपने सहस्रनामकी स्वयं भी एक टीका लिखी है जो उपलब्ध है। ५-औदार्य चिन्तामणि-यह प्राकृतव्याकरण है और हेमचन्द्र तथा त्रिविक्रमके व्याकरणोंसे बड़ा है। इसकी प्रति बम्बईके ऐ० पन्नालाल सरस्वतीभवन में है ( ४६८ क ), जिसकी पत्रसंख्या ५६ है। यह स्वोपज्ञवृत्तियुक्त है। ६-महाभिषेक टीका-पं० आशाधरके नित्यमहोद्योतकी यह टीका है। यह उस समय बनाई गई है जबकि श्रुतसागर देशव्रती या ब्रह्मचारी थे। ७-व्रतकथाकोश-इसमें आकाशपञ्चमी, मुकुटसप्तमी, चन्दनषष्ठी, अष्टाह्निका आदि व्रतोंकी कथायें है। इसकी भी एक प्रति बम्बईके सरस्वती भवनमें है और यह भी उनकी देशव्रती या ब्रह्मचारी अवस्थाकी रचना है। ८-श्रुतस्कन्धपूजा-यह छोटी-सी नौ पत्रोंकी पुस्तक है। इसकी भी एक प्रति बंबईके सरस्वतीभवनमें है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012005
Book TitleMahendrakumar Jain Shastri Nyayacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya, Hiralal Shastri
PublisherMahendrakumar Jain Nyayacharya Smruti Granth Prakashan Samiti Damoh MP
Publication Year1996
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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