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________________ ४/ विशिष्ट निबन्ध : २४३ वाला मानसोत्तर नामका एक पर्वत है। यह दस हजार योजन ऊँचा और इतना ही लम्बा है। इस द्वीपके आगे लोकालोक नामका एक पर्वत है । लोकालोक पर्वत सूर्यसे प्रकाशित और अप्रकाशित भूभागोंके बीच में स्थित है इसीसे इसका यह नाम पड़ा। यह इतना ऊँचा और इतना लम्बा है कि इसके एक ओरसे तीनों लोकोंको प्रकाशित करनेवाली सूर्यसे लेकर ध्रुव पर्यंत समस्त ज्योतिमण्डलकी किरणें दूसरी ओर नहीं जा सकती। समस्त भूगोल पचास करोड़ योजन है । इसका चौथाई भाग ( १२॥ करोड़ योजन ) यह लोकालोक पर्वत है। इस प्रकार भूलोकका परिमाण समझना चाहिए । भूलोकके परिमाणके समान ही धुलोकका भी परिमाण है । इन दोनों लोकोंके बीचमें अन्तरिक्ष लोक है, जिसमें सूर्य, चन्द्रमा, ग्रह, नक्षत्र और ताराओंका निवास है। सूर्यमण्डलका विस्तार दस हजार योजन है और चन्द्रमण्डलका विस्तार बारह हजार योजन है। अतल आदि नीचेके लोकोंका वर्णन-भूलोकके नीचे अतल, वितल, सूतल, तलातल, महातल, रसातल और पातालके नामके सात भ-विवर (बिल ) हैं। ये क्रमशः नीचे-नीचे दस दस हजार योजनकी दरी पर स्थित है। प्रत्येक बिलकी लम्बाई चौड़ाई भी दस दस हजार योजन की है। ये भूमिके बिल भी एक प्रकारके स्वर्ग हैं । इनमें स्वर्गसे भी अधिक विषयभोग, ऐश्वर्य, आनन्द, सन्तानसुख और धन-संपत्ति है। नरकोंका वर्णन-समस्त नरक अट्ठाइस हैं । जिनके नाम निम्न प्रकार है-तामिस्र, अन्धतामिस्र, रौरव, महारौरव कुम्भीपाक, कालसूत्र, असिसत्रवन, सूकरमुख, अन्धकूप, कृमिभाजन, सन्दंश, तप्तसूमि, वज्रकण्टकशाल्मली, वैतरणी, पूयोद, प्राणरोध, विशसन, लालाभक्ष, सारमेयादन, अवीचि, अयःपान, क्षारकर्दम, रक्षोगणभोजन, शूलप्रोत, दन्दशूक, अवटरोधन, पर्यावर्तन और सूचीमुख । जो पुरुष दूसरोंके धन, सन्तान अथवा स्त्रियोंका हरण करता है उसे अत्यन्त भयानक यमदत कालपाशमें बांधकर बलात्कारसे तामिस्र नरकमें गिरा देता है। इसी प्रकार जो पुरुष किसी दूसरेको धोखा देकर उसकी स्त्री आदिको भोगता है वह अन्धतामिस्र नरक में पड़ता है। जो पुरुष इस लोकमें यह शरीर ही मैं हूँ और ये स्त्री, धनादि मेरे हैं ऐसी बुद्धिसे दूसरे प्राणियोंसे द्रोह करके अपने कुटुम्बके पालन-पोषणमें ही लगा रहता है वह रौरव नरकमें गिरता है । जो कर मनुष्य इस लोकमें अपना पेट पालनेके लिए जीवित पशु या पक्षियोंको रांधता है उसे यमदत कूम्भीपाक नरकमें ले जाकर खौलते हए तेलमें रांधते हैं। जो पुरुष इस लोकमें खटमल आदि जीवोंकी हिंसा करता है वह अन्धकूप नरकमें गिरता है। इस लोकमें यदि कोई पुरुष अगम्या स्त्रीके साथ सम्भोग करता है अथवा कोई स्त्री अगम्य पुरुषसे व्यभिचार करती है तो यमदूत उसे तप्तसूमि नरकमें ले जाकर कोड़ोंसे पीटते हैं । तथा पुरुषको तपाए हुए लोहेकी स्त्री-मूर्तिसे और स्त्रीको तपायी हुई पुरुष-प्रतिमासे आलिगन कराते हैं। जो पुरुष इस लोकमें पशु आदि सभीके साथ व्यभिचार करता है उसे यमदत वज्रकण्टकशाल्मली नरकमें ले जाकर वज्रके समान कठोर काँटोंवाली सेमरके वृक्षपर चढ़ाकर फिर नीचेकी ओर खींचते है । जो राजा या राजपुरुष इस लोकमें श्रेष्ठकुलमें जन्म पाकर भी धर्मकी मर्यादाका उच्छेद करते है वे उस मर्यादातिक्रमके कारण मरने पर वैतरणी नदीमें पटके जाते हैं। यह नदी नरकोंकी खाईके समान है। यह नदी मल, मत्र, पीव, रक्त, केश, नख, हड्डी, चर्बो, मांस, मज्जा आदि अपवित्र पदार्थोंसे भरी हुई है । जो पुरुष इस लोकमें नरमेधादिके द्वारा भैरव , यक्ष, राक्षस, आदिका यजन करते है उन्हें वे पशुओंकी तरह मारे गये पुरुष यमलोकमें राक्षस होकर तरह-तरहकी यातनाएँ देते है तथा रक्षोगणभोजन नामक नरकमें कसाइयोंके समान कुल्हाड़ीसे काट काटकर उसका लोहू पीते हैं तथा जिस प्रकार वे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012005
Book TitleMahendrakumar Jain Shastri Nyayacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya, Hiralal Shastri
PublisherMahendrakumar Jain Nyayacharya Smruti Granth Prakashan Samiti Damoh MP
Publication Year1996
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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