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________________ ४ / विशिष्ट निबन्ध : २१७ नियताऽनियतत्ववाद-जैनदृष्टिसे द्रव्यगत शक्तियाँ नियत हैं पर उनके प्रतिक्षणके परिणमन अनिवार्य होकर भी अनियत हैं । एक द्रव्यकी उस समयकी योग्यतासे जितने प्रकारके परिणमन हो सकते हैं उनमेंसे कोई भी परिणमन जिसके निमित्त और अनुकूल सामग्री मिल जायगी हो जायगा । तात्पर्य यह है कि प्रत्येक द्रव्यकी शक्तियाँ तथा उनसे होनेवाले परिणमनोंकी जाति सुनिश्चित है । कभी भी पदगलके परिणमन जीवमें तथा जीवके परिणमन पुद्गलमें नहीं हो सकते । पर प्रतिसमय कैसा परिणमन होगा यह अनियत है । जिस समय जो शक्ति विकसित होगी तथा अनुकूल निमित्त मिल जायगा उसके बाद वैसा परिणमन हो जायगा । अतः नियतत्व और अनियतत्त्व दोनों धर्म सापेक्ष हैं, अपेक्षा भेदसे सम्भव हैं। जीवद्रव्य और पुद्गल द्रव्यका ही खेल यह जगत है। इनकी अपनी द्रव्यशक्तियाँ नियत हैं। संसारमें किसीकी शक्ति नहीं जो द्रव्यशक्तियोंमेंसे एकको भी कम कर सके या एकको बढा सके। इनका आ और तिरोभाव पर्यायके कारण होता रहता है। जैसे मिट्टी पर्यायको प्राप्त पदगलसे तेल नहीं निकल सकता, वह सोना नहीं बन सकती, यद्यपि तेल और सोना भी पुद्गल ही बनता है, क्योंकि मिट्टी पर्यायवाले पुद्गलोंकी वह योग्यता तिरोभूत है, उसमें घट आदि बननेकी, अंकुरको उत्पन्न करनेकी, बर्तनोंके शुद्ध करनेकी, प्राकृतिक चिकित्सामें उपयोग आनेकी आदि पचासों पर्याय योग्यताएं विद्यमान हैं। जिसकी सामग्री मिलेगी अगले क्षणमें वही पर्याय उत्पन्न होगी। रेत भी पुद्गल है पर इस पर्यायमें धड़ा बननेकी योग्यता तिरोभूत है, अप्रकट है, उसमें सीमेंटके साथ मिलकर दीवालपर पुष्ट लेप करनेकी योग्यता प्रकट है, वह काँच बन सकती है या बही पर लिखी जानेवाली काली स्याहीका शोषण कर सकती है। मिट्टी पर्यायमें ये योग्यताएँ अप्रकट हैं । तात्पर्य यह कि : (१) प्रत्येक द्रव्यकी मूलद्रव्यशक्तियाँ नियत हैं उनकी संख्यामें न्यूनाधिकता कोई नहीं कर सकता। पर्यायके अनुसार कुछ शक्तियाँ प्रकट रहती हैं और कुछ अप्रकट । इन्हें पर्याय योग्यता कहते हैं। (२) यह नियत है कि चेतन का अचेतनरूपसे तथा अचेतनका चेतनरूपसे परिणमन नहीं हो सकता । (३) यह भी नियत है कि एक चेतन या अचेतन द्रव्यका दूसरे सजातीय चेतन या अचेतन द्रव्य रूपसे परिणमन नहीं हो सकता। (४) यह भी नियत है कि दो चेतन मिलकर एक संयुक्त सदश पर्याय उत्पन्न नहीं कर सकते जैसे कि अनेक अचेतन परमाणु मिलकर अपनी संयुक्त सदृश घट पर्याय उत्पन्न कर लेते हैं । (५) यह भी नियत है कि द्रव्यमें उस समय जितनी पर्याय योग्यताएं हैं उनमें जिसके अनुकल निमित्त मिलेंगे वही परिणमन आगे होगा, शेष योग्यताएँ केवल सद्भावमें रहेंगी। (६) यह भी नियत है कि प्रत्येक द्रव्यका कोई न कोई परिणमन अगले क्षणमें अवश्य होगा। यह परिणमन द्रव्यगत मूल योग्यताओं और पर्यायगत प्रकट योग्यताओंकी सीमाके भीतर ही होगा, बाहर कदापि नहीं। (७) यह भी नियत है कि निमित्त उपादान द्रव्यकी योग्यताका ही विकास करता है, उसमें नूतन सर्वथा असद्भूत परिणमन उपस्थित नहीं कर सकता । (८) यह भी नियत है कि प्रत्येक द्रव्य अपने-अपने परिणमनका उपादान होता है। उस समयकी पर्याययोग्यतारूप उपादानशक्तिकी सीमाके बाहिरका कोई परिणमन निमित्त नहीं ला सकता । परन्तु (१) यही एक बात अनियत है कि 'अमुक समयमें अमुक परिणमन ही होगा।' मिट्टीकी पिंडपर्यायमें घड़ा, सकोरा, सुराई, दिया आदि अनेक पर्यायों के प्रकटानेकी योग्यता है । कुम्हारकी इच्छा और क्रिया आदि का निमित्त मिलनेपर उनमेंसे जिसकी अनकूलता होगी वह पर्याय अगले क्षणमें उत्पन्न हो जायगी । यह कहना कि 'उस समय मिट्टीकी यही पर्याय होनी थी, उनका मेल भी सद्भाव रूपसे होना था, पानीकी यही पर्याय होनी थी' द्रव्य और पर्यायगत योग्यताके अज्ञानका फल है। ४-२८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012005
Book TitleMahendrakumar Jain Shastri Nyayacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya, Hiralal Shastri
PublisherMahendrakumar Jain Nyayacharya Smruti Granth Prakashan Samiti Damoh MP
Publication Year1996
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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