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________________ माँ सरस्वती के वरदपुत्र कोटि जन्म तप तपै, ज्ञान बिन कर्म झरे जे। ज्ञानी के छिनमांहि, त्रिगुप्ति ते सहज टरै ते ॥ विद्वद्वयं श्री महेन्द्रकुमार न्यायाचार्यका स्मृति ग्रन्थ प्रकाशनका समाचार श्री बाबूलालजी फागुल्लसे ज्ञात होते ही दिमागमें एक लहर सी उठ आई, आखिर यह क्यों ? सोचा इसमें गलत है ही क्या ? ज्ञानी, जिनवाणीका अनुरागी उसका स्मरण अरहंतदेवकी दिव्यदेशनाका स्मरण है। अतः यह तो होना ही चाहिये । माँ सरस्वतीके पुत्र श्री महेन्द्रकुमारजी ने अपनी आयुके अल्पवर्षों में ही न्याय जैसे जटिल विषयके ग्रन्थोंका सम्पादन कर जैनदर्शनकी महत्ताको गौरवान्वित किया है। स्मृति-ग्रन्थके माध्यमसे आपकी जैनदर्शनके प्रति समर्पणकी भावना युग-युग तक स्मरणीय बनेगी। और स्वाध्याय प्रेमियोंके लिये उनका अद्भुत श्रम अनुकरणीय बनेगा। स्मृति-ग्रन्थके प्रधान सम्पादक श्री दरबारीलालजी कोठिया एवं समस्त सम्पादक मण्डलको मेरा आशीर्वाद है। आगे भी इसी प्रकार ज्ञानियोंका स्मरण करते हुए जिनागमकी प्रभावना करते रहें। आचार्य श्री भरतसागरजी महाराज Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012005
Book TitleMahendrakumar Jain Shastri Nyayacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya, Hiralal Shastri
PublisherMahendrakumar Jain Nyayacharya Smruti Granth Prakashan Samiti Damoh MP
Publication Year1996
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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