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________________ १२८ : डॉ० महेन्द्रकुमार जैन न्यायाचार्य स्मृति-ग्रन्थ "भाव्यतीतयोः मरणजाग्रद्द्बोधयोरपि नारिष्टोद्बोधौ प्रति हेतुत्वम् । तद्व्यापाराश्रितं हि तद्भावभावित्वम् । " - परीक्षामु० ३।६२, ६३ | छठे अध्यायके ५७वें सूत्रमें प्रभाकरकी प्रमाणसंख्याका खंडन किया है । प्रभाकर गुरुका समय ईसा - की ८ वीं सदीका प्रारम्भिक भाग है । माणिक्यनन्दिका समय — प्रमेयरत्नमालाकार के उल्लेखानुसार माणिक्यनन्दि आचार्य अकलंकदेव के अनन्तरवर्ती हैं । मैंने अकलङ्कग्रन्थत्रय और उसके कर्ता लेखमें अकलंकदेवका समय ई० ७२० से ७८० तक सिद्ध किया है । अलङ्कदेवके लघीयस्त्रय और न्यायविनिश्चय आदि तर्कग्रन्थोंका परीक्षामुखपर पर्याप्त प्रभाव है, अतः माणिक्यनन्दिके समयकी पूर्वावधि ई० ८०० निर्बाध मानी जा सकती है। प्रज्ञाकरगुप्त ( ई० ७२५ क) प्रभाकर ( वीं सदीका पूर्वभाग ) आदि के मतों का खंडन परीक्षामुखमें है, इससे भी माणिक्यनन्दिकी उक्त पूर्वावधिका समर्थन होता है । आ० प्रभाचन्द्रने परीक्षामुखपर प्रमेयकमलमार्त्तण्डनामक व्याख्या लिखी है । प्रभाचन्द्रका समय ई० की ११ वीं शताब्दी है । अतः इनकी उत्तरावधि ईसाकी १०वीं शताब्दी समझना चाहिए । इस लम्बी अवधिको संकुचित करने का कोई निश्चित प्रमाण अभी दृष्टिमें नहीं आया । अधिक संभव यही है कि ये विद्यानन्दके समकालीन हों और इसलिए इनका समय ई० ९वीं शताब्दी होना चाहिए । आ० प्रभाचन्द्र ० प्रभाचन्द्र के समयविषयक इस निबन्धको वर्गीकरणके ध्यानसे तीन स्थूल भागों में बाँट दिया है - १ प्रभाचन्द्रकी इतर आचार्योंसे तुलना, २ समय विचार, ३ प्रभाचन्द्रके ग्रन्थ । प्रभाचन्द्रकी इतर आचार्योंसे तुलना इस तुलनात्मक भागको प्रत्येक परम्पराके अपने क्रमविकासको लक्ष्य में रखकर निम्नलिखित उपभागों में क्रमश: विभाजित कर दिया है । १ वैदिक दर्शन - वेद, उपनिषद, स्मृति, पुराण, महाभारत, वैयाकरण, सांख्य योग, वैशेषिक न्याय, पूर्वमीमांसा, उत्तरमीमांसा । २ अवैदिक दर्शन-बौद्ध, जैन - दिगम्बर श्वेताम्बर । वैदिक दर्शन वेद और प्रभाचन्द्र-आ० प्रभाचन्द्रने प्रमेयकमलमार्तण्ड में पुरातनवेद ऋग्वेदसे "पुरुष एवेदं यद्भूतं” “हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे" आदि अनेक वाक्य उद्धृत किये हैं । कुछ अन्य वेदवाक्य भी न्यायकुमुन्दचन्द्र ( पृ० ७२६ ) में उद्धृत हैं - " प्रजापतिः सोमं राजानमन्वसृजत्, ततस्यत्रो वेदा अन्वसृज्यन्त " "रुद्रं वेदकर्त्तारम्” आदि । न्यायकुमुदचन्द्र ( पृ० ७७० ) में " आदौ ब्रह्मा मुखतो ब्राह्मणं ससर्ज बाहुभ्यां क्षत्रियमुरूम्यां वैश्यं पद्भ्यां शूद्रम्" यह वाक्य उद्धृत है । यह ऋग्वेदके "ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीद्” आदि सूक्तकी छाया रूप ही है । उपनिषत् और प्रभाचन्द्र - आ० प्रभाचन्द्र ने अपने दोनों न्यायग्रन्थोंमें ब्रह्माद्वैतवाद तथा अन्य प्रकरणों में अनेकों उपनिषदोंके वाक्य प्रमाणरूप से उद्धृत किये हैं। इनमें बृहदारण्यकोपनिषद्, छान्दोग्योपनिषद्, कठोपनिषत्, श्वेताश्वतरोपनिषत्, तैत्तिर्युपनिषत् ब्रह्मबिन्दूपनिषत्, रामतापिन्युपनिषत्, जाबालोपनिषत् आदि उपनिषत् मुख्य हैं । इनके अवतरण अवतरणसूची में देखना चाहिये । स्मृतिकार और प्रभाचन्द्र - महर्षि मनुकी मनुस्मृति और ज्ञायवल्क्यकी याज्ञवल्क्यस्मृति प्रसिद्ध हैं । आ० प्रभाचन्द्रने कारकसाकल्यवादके पूर्वपक्ष ( प्रमेयक० पृ० ८ ) में याज्ञवल्क्यस्मृति ( २।२२ ) का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012005
Book TitleMahendrakumar Jain Shastri Nyayacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya, Hiralal Shastri
PublisherMahendrakumar Jain Nyayacharya Smruti Granth Prakashan Samiti Damoh MP
Publication Year1996
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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