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________________ ४ / विशिष्ट निबन्ध : ३९ चाहिये किन्तु प्रमाणविषयत्व करना चाहिये । इससे यह तात्पर्य होगा कि जो वस्तु जिस प्रमाणका विषय होकर यदि उसी प्रमाणसे उपलब्ध न हो तो उसका अभाव सिद्ध होगा । देखो - मृत शरीर में स्वभाव से अतीन्द्रिय परचैतन्यका अभाव भी हम लोग सिद्ध करते । यहाँ परचैतन्यमें प्रत्यक्षविषयत्वरूप दृश्यत्व तो नहीं है; क्योंकि परचैतन्य हमारे प्रत्यक्षका विषय नहीं होता । वचन उष्णताविशेष या आकारविशेष आदिके द्वारा उसका अनुमान किया जाता है, अतः उन्हीं वचनादिके अभाव से चैतन्यका अभाव सिद्ध होना चाहिये । अदृश्यापलब्धि यदि संशय हेतु मानी जाय तो अपनी अदृश्य आत्माकी सत्ता भी कैसे सिद्ध हो सकेगी ? आत्मादि अदृश्य पदार्थ अनुमानके विषय हैं; यदि हम उनकी अनुमानसे उपलब्धि न कर सकें तब उनका अभाव सिद्ध कर सकते हैं । हाँ, जिन पिशाचादि पदार्थोंको हम किसी भी प्रमाणसे नहीं जान सकते उनका अभाव हम अनुपलब्धिसे नहीं कर सकेंगे । तात्पर्य यह कि - जिस वस्तुको हम जिन-जिन प्रमाणोंसे जानते हैं उस वस्तुका उनउन प्रमाणोंकी निवृत्तिसे अभाव सिद्ध होगा । अकलंककृत हेतुके भेद - अकलंकदेवने सद्भाव साधक छः उपलब्धियोंका वर्णन किया है १ - स्वभावोपलब्धि — आत्मा है, उपलब्ध होनेसे । २- स्वभावकार्योपलब्धि - आत्मा थी, स्मरण होनेसे । ३ -स्वभावकारणोपलब्धि - आत्मा होगी, सत् होनेसे । ४- सहचरोपलब्धि — आत्मा है, स्पर्श विशेष ( शरीर में उष्णता विशेष ) पाया जानेसे । ५- सहचरकार्योपलब्धिकायव्यापार हो रहा है, वचनप्रवृत्ति होनेसे । ६- सहचरकारणोपलब्धि - आत्मा सप्रदेशी है, सावयवशरीरके प्रमाण होनेसे । असद्व्यवहारसाधनके लिए छ: अनुपलब्धियाँ बतायी हैं १ - स्वभावानुपलब्धि – क्षणक्षयैकान्त नहीं है, अनुपलब्ध होनेसे । २ - कार्यानुपलब्धि – क्षणक्षयैकान्त नहीं है, उसका कार्य नहीं पाया जाता । ३- कारणानुपलब्धि – क्षणक्ष यैकान्त नहीं है, उसका कारण नहीं पाया जाता । ४ - स्वभावसहचरानुपलब्धि — आत्मा नहीं है, रूपविशेष ( शरीरमें आकारविशेष ) नहीं पाया जाता । ५- सहचरकार्यानुपलब्धि-- आत्मा नहीं है, व्यापार, आकारविशेष तथा वचन विशेषकी अनुपलब्धि होने से । ६- सहचर कारणानुपलब्धि - आत्मा नहीं है, उसके द्वारा आहार ग्रहण करना नहीं देखा जाता । सजीव शरीर ही स्वयं आहार ग्रहण करता है । सद्व्यवहारके निषेधके लिए ३ उपलब्धियां बतायीं हैं १ - स्वभावविरुद्धोपलब्धि - पदार्थ नित्य नहीं है, परिणामी होनेसे । २ - कार्य विरुद्धोपलब्धि - लक्षणविज्ञान प्रमाण नहीं है, विसंवादी होनेसे । (?) ३- कारणविरुद्धोपलब्धि - इस व्यक्तिको परीक्षाका फल प्राप्त नहीं हो सकता, क्योंकि इसने अभावकान्ता ग्रहण किया है । इस तरह सद्भावसाधक ९ उपलब्धियाँ तथा अभावसाधक छः अनुपलब्धियोंको कण्ठोक्त कहकर इनके और अन्य अनुपलब्धियोंके भेदप्रभेदोंका इन्हीं में अन्तर्भाव किया है। साथ ही यह भी बताया है कि-धर्मकीर्तिके कथनानुसार अनुपलब्धियाँ केवल अभाव साधक ही नहीं हैं, किन्तु भावसाधक भी होती हैं । इसी संकेतके अनुसार माणिक्यनन्दि, विद्यानन्द तथा वादिदेवसूरिने उपलब्धि और अनुपलब्धि दोनोंको उभयसाधक मानकर उनके अनेकों भेदप्रभेद किये हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012005
Book TitleMahendrakumar Jain Shastri Nyayacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya, Hiralal Shastri
PublisherMahendrakumar Jain Nyayacharya Smruti Granth Prakashan Samiti Damoh MP
Publication Year1996
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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