SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 171
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४० : डॉ० महेन्द्रकुमार जैन न्यायाचार्य स्मृति ग्रन्थ ८-दाद्रि ( आबू पर्वत ) कल्प प्रारम्भ में आब पहाड़की विस्तृत कथा दी गयी है । संवत् १०८८ में चैत्यालयका निर्माण करवा कर उसका नाम विमलवसति रखा गया । संवत् १२८८ में लूणिगवसतिका निर्माण किया गया जिसमें भगवान् पार्श्वनाथ की कसौटीके पत्थरकी प्रतिमा विराजमान की गयी। इन दोनों विमल वसति एवं लूणिगवसतिको म्लेच्छोंने नष्ट कर दिया था । उसके पश्चात् विमलवसतिका पुनरुद्धार विक्रम संवत् १२४३ में श्री महणसिंह - के पुत्र लल्लने किया । तथा चण्डसिंहके पुत्र पीथडने लूणिगवसतिका उद्धार किया । इस कल्प में ५२ पद्य हैं । ९- मथुरापुरी कल्प इस कल्पमें मथुरा नगरी, चौरासी मथुरा आदिका विस्तृत इतिहास दिया गया है । १०- अश्वावबोध तीर्थ कल्प इस कल्प में अश्वावबोध तीर्थ एवं सकुलिकाविहार इन दोनों तीर्थोंका विस्तृत वर्णन है । इस कल्पके अनुसार भगवान् मुनिसुव्रतनाथ के निर्वाणके ११८४४७० वर्ष पश्चात् विक्रम संवत् चला तथा ११९४९७२ के पश्चात् विक्रम राजा हुए । ११ - वैचारगिरि कल्प इस कल्पकी रचना संवत् १३६४ में की गयी थी, राजगृही में पहिले वैश्योंके छत्तीस हजार घर थे जिनमें आधे बौद्ध और आधे जैन थे । १२ - कौशाम्बी नगरी कल्प इन नगरीमें भगवान् महावीरका चन्दनवालाके यहाँ पाँच कम छह माहके पश्चात् पारणा हुआ था । वह ज्येष्ठ सुदी दशमीका दिन था । कौशाम्बी आर्या मृगावतीका नगर था । इसी नगरीमें भगवान् पद्मप्रभुके गर्भं, जन्म, दीक्षा एवं ज्ञान ये चार कल्याणक हुए । १३ - अयोध्यानगरी कल्प अयोध्या नगरी ऋषभदेव, अजितनाथ, संभवनाथ, अभिनन्दन, सुमतिनाथ एवं अनन्तनाथकी जन्मभूमि है । भगवान् महावीरके नवें गणधर श्री अचलभानु एवं विमलवाहन आदि सात कुलकरोंकी जन्मभूमि रही थी । भगवान् पार्श्वनाथ की दिव्य प्रतिमाकी स्थापनाका इतिहास भी दिया हुआ है । १४ - अपापापुरी संक्षिप्त कल्प इसका दूसरा नाम पावापुरी है जहाँसे भगवान् महावीरने निर्वाण पद प्राप्त किया था । यहीं महावीर स्वामी के कानोंसे कील निकाली गयी थी। इसी नगरीमें भगवान् महावीर जृम्भिका नगरी में पधार कर सर्व प्रथम उपदेश दिया था । १५ - कलिकुण्ड कुक्कुटेश्वर कल्प इसमें विण्ड तीर्थ उद्भवकी कथा एवं कुक्कुटेश्वर कल्पकी उत्पत्तिकी कथा दी हुई है । १६- हस्तिनापुर कल्प तीर्थंकर शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ एवं अरनाथ तीर्थंकरोंकी जन्मभूमि तथा इनके दीक्षा कल्याणक एवं ज्ञान कल्याणक की भूमि रहनेका सौभाग्य प्राप्त है । भगवान् ऋषभनाथका प्रथम आहार हुआ । यहाँ मल्लि'नाथ स्वामीका समवसरण आया था । विष्णुकुमार मुनि द्वारा सात सौ मुनियोंकी रक्षा आदि आश्चर्यजनक घटनाएँ हुईं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012005
Book TitleMahendrakumar Jain Shastri Nyayacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya, Hiralal Shastri
PublisherMahendrakumar Jain Nyayacharya Smruti Granth Prakashan Samiti Damoh MP
Publication Year1996
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy