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________________ पण्डित महेन्द्रकुमार जैन न्यायाचार्य : एक परिचय • पं० हीरालाल जैन ' कौशल', दिल्ली आपका जन्म जैन नगरी खुरई ( सागर ) म० प्र० में श्री जवाहरलालजी जैनके यहाँ उनकी पत्नी श्रीमती सुन्दरबाईके कोखसे दि० ११ मई १९११ तदनुसार वैशाख शुक्ला पूर्णिमा वि० सं० १९६८ को हुआ था । बुद्ध पूर्णिमाका दिन था । संयोगकी बात है कि हिन्दू विश्वविद्यालय में बौद्धदर्शन के हो प्राध्यापक पद पर आपकी नियुक्ति हुई । पूर्णमासीको जन्म होनेके कारण आपका नाम पूर्णचन्द्र रखा गया था । खुरईमें प्रारम्भिक शिक्षाके पश्चात् बीनाकी पाठशालासे विशारद तककी पढ़ाई शीघ्र पूरी कर ली । आपका नाम भी महेन्द्रकुमार हो गया । फिर सर हुकुमचन्द महाविद्यालय, इन्दौर में प्रविष्ट होकर धुरन्धर विद्वान् पं० वंशीधरजी न्यायालंकारसे सिद्धान्तशास्त्र, दर्शनशास्त्र के सुप्रसिद्ध विद्वान् पं० जीवन्धरजीसे दर्शनशास्त्र तथा पं० शम्भुनाथजी त्रिपाठी व्याकरणाचार्यमे साहित्यका गम्भीर अध्ययन किया। सन् १९२१ में प्रथमश्रेणी में न्यायतीर्थं तथा अगले वर्ष शास्त्रीको पदवी प्राप्त की तथा १९ वर्षकी आयुमें शास्त्री - विद्वान् बन गये । खुरई आ जाने पर वहाँ श्रीमन्त सेठ मोहनलालजी द्वारा संचालित जैन पाठशालामें अध्यापक हो गये । उसी वर्ष दमोह सिंघई रामलालजोकी सुपुत्री कु० चम्पाबाईसे आपका विवाह हो गया । सन् १९३० में ही स्याद्वाद महाविद्यालय, बनारस में दर्शनाध्यापक के पद पर आपकी नियुक्ति हो गयी । अपने अध्ययनको जारी रखने हुए बनारस पहुँचने पर न्यायाचार्यकी परीक्षा उत्तीर्ण की। १३ वर्ष तक कार्य करनेके पश्चात् सन् १९४३ में आप श्री महावीर जैन विद्यालय में अध्यापक बनकर बम्बई चले गये । वहाँ प्रख्यात पुरातत्त्व प्रेमी माननीय नाथूरामजी प्रेमीके सम्पर्क में प्राचीन ग्रन्थोंको खोज शोध की । बम्बई में आप बहुत समय नहीं रह सके | उन्हीं दिनों आपकी पत्नी श्रीमती चम्पाबाईका निधन हो गया । ये अपने पीछे दो पुत्रियाँ प्रभा एवं मणिप्रभा तथा एक पुत्र पदमकुमारको छोड़ गयीं । स्वनामधन्य साहू शान्तिप्रसादजी तथा उनकी पत्नी श्रीमती रमारानी जैनने प्राचीन ग्रन्थोंकी शोध, खोज, सम्पादन तथा प्रकाशन हेतु भारतीय ज्ञानपीठकी स्थापना की और उसके संचालन और व्यवस्थाके लिए श्री महेन्द्रकुमारजीको बनारस बुलाया गया। आपके अथक प्रयासोंसे संस्थाकी चहुँमुखी उन्नति हुई । संस्थाकी ओर से आपने 'ज्ञानोदय' नामक पत्र निकाला एव 'लोकोदय' ग्रन्थमालाकी स्थापना की । सन् १९४७ में बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में बौद्धदर्शनके प्राध्यापकके रूपमें आपकी नियुक्ति हो गयी । इसी वर्ष आपका दूसरा विवाह कु० नर्मदाबाईसे हुआ । यह भी सात वर्ष बाद १९५४ में एक पुत्र अरविन्द - कुमार तथा दो पुत्रियाँ कु० आशा और कु० आभाको छोड़कर चल बसीं । आप पर गृहस्थीका सारा उत्तरदायित्व आ पड़ा जिसे आपने बड़ी सावधानीसे निभाया । आप पक्के देशभक्त तथा गांधीवादी विचारधाराके पोषक थे । दिगम्बर जैन परिषद तथा समाजके अन्य बड़े अधिवेशनोंमें आपकी उपस्थिति अवश्य हुआ करती थी । डॉ० महेन्द्रकुमारजी के दो भाई और हैं श्री मंगलजीतजी एवं धन्यकुमारजी । एवं दो बहनें हैं बड़ी श्रीमती कस्तूरीबाई जो लक्ष्मीचन्द्रजी शास्त्रीको व्याही थीं एवं दूसरी बहिन श्रीमती कान्तादेवी जो विद्वत्वर्य पं० हीरालाल जैन 'कौशल' को विवाही हैं जो शिक्षाके क्षेत्रमें देश के शिक्षा मंत्री द्वारा राजकीय पुरस्कारसे सम्मानित, महावीर निर्वाण पच्चीस सौवें महोत्सव पर राष्ट्रसंत आचार्य विद्यानन्दजीके सानिध्य में महामहिम २-१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012005
Book TitleMahendrakumar Jain Shastri Nyayacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya, Hiralal Shastri
PublisherMahendrakumar Jain Nyayacharya Smruti Granth Prakashan Samiti Damoh MP
Publication Year1996
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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