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________________ ६०४ : सिद्धान्ताचार्य पं० फूलचन्द्र शास्त्री अभिनंदन-ग्रन्थ करके धर्मशास्त्रका अधिकारी नहीं बन सकूँगा ? मन कहने लगा-फूलचन्द्र चिन्ता क्यों करते हो, अपने विचारोंको कार्यान्वित करो, सफलता अवश्य मिलेगी। सच मानिये, जब तक मैं मोरेनामें रहा, कार्यालयके खुलने पर प्रतिदिन मैं उसके सामने जाता और उनके चित्रका दर्शन कर अपनेको धन्य मानने लगा। मेरी धर्मशास्त्रमें विशेष रुचि होनेका यदि किसीको पूरा श्रेय दिया जा सकता है तो वे है गुरु गोपालदासजी । मैंने उनके विषयमें और भी अनेक संस्मरण सुने हैं। किन्तु किसी भी स्नातकके लिए अपनी विद्यामें निपुणता प्राप्त करनेके लिए जितना यह संस्मरण उपयोगी है उतना अन्य नहीं। वह किसी भी विषयका स्नातक क्यों न हो, यह संस्मरण सबके लिए उपयोगी है। __ यहाँ मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि इसके बाद मेरे जीवन पर अमिट छाप छोड़नेवाला इसके पूर्व कालीन विद्वानोंमें यदि कोई दूसरा विद्वान् हैं तो वह महापुरुष हैं—पण्डितप्रवर टोडरमलजी। इनके जीवन और साहित्यिक कार्योंसे भी मैंने बहुत बड़ी शिक्षा ली है। आज गुरुजी हमारे बीच में तो नहीं हैं। उनकी स्मृति और कार्यमात्र शेष है। उन्होंने शिक्षाके क्षेत्रमें एक युगका निर्माण किया है । वस्तुतः सब विद्वान् उसीके सुफल हैं। उन्होंने अपने जीवनमें जिस मार्गका अनुसरण किया उसपर सब विद्वान् तो न चल सके । परिस्थितिको ही इसके लिए दोषी ठहराया जा सकता है। किन्तु उन्होंने जो प्रकाश दिया वह आज भी सब विद्वानोंके हृदयोंको प्रकाशित कर रहा है। उनके दिवंगत होनेके बाद जिस उत्साह और निष्ठावश हम उनको स्मरण कर रहे हैं वह हम सब विद्वानोंका मार्ग-दर्शक बने यह भला कौन नहीं चाहेगा। मंगलस्वरूप गुरुजी हमारे मंगलपथके प्रदर्शक बनें, यह मनीषा जीवनभर हम सबको अनुप्राणित करती रहे यह कामना है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012004
Book TitleFulchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain, Kailashchandra Shastri
PublisherSiddhantacharya Pt Fulchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Varanasi
Publication Year1985
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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