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________________ ५० सिद्धान्ताचार्य पं० फूलचन्द्र शास्त्री अभिनन्दन ग्रन्थ । सुमैया समाजसे ही सम्बन्ध रखने वाली एक और पटना है। विद्यार्थी छोटेलालकी बहन का पं० कमलकुमारजी के साथ विवाह करा ही दिया था, उससे प्रभावित होकर छोटेलालजीकी माँ अपनी दूसरी लड़कीको लेकर पिताजीके घर आ गई और बताया कि समैया समाजका एक लड़का उन्होंने अपनी लड़की के साथ विवाह के लिये निश्चित कर लिया है, लड़का भी सहमत है परन्तु बीनाकी पूरी समाजकी इसपर गहरी प्रतिक्रिया हुई और जिस दिन सगाईका दस्तूर निश्चित हुआ उसी दिन स्व० श्रीसिंघईजी श्रीनन्दलालजी की बैठकमें जैन समाज एकत्रित हुई। उसमें पिताजीको बुलाया गया और उनसे कहा गया कि, 'इस विवाहको कराने में आपकी साजिश है ऐसा मालूम हुआ है। अतः आप इस सम्बन्धको रोक दें।' पिताजी के यह कहने पर कि, 'मेरा इसमें कोई हाथ नहीं है, अलबत्ता इसके कि लड़की की माँ मेरे यहाँ ठहरी हुई हैं, ' 'समाजने उनसे आग्रहपूर्वक कहा कि, 'यदि ऐसी बात है तो आपको इस सगाईके दस्तूर में सम्मिलित नहीं होना चाहिये । फिर भी आप नहीं मानेंगे तो आप विचार कर लें कि इसका नतीजा क्या होगा।' इसपर पिताजीने उत्तर दिया, 'क्या होगा, चूहेकी दौर मंगरे तक' और क्या होगा। इसके बाद बैठक समाप्त हो गई और पिताजी उठकर चले आये । फिर भी बीनाकी समाजने मेरे प्रति कोई प्रतिकूल प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की । 7 में रहते हुए एक दूसरी घटना घटित हो गई । पिताजी बीनामें हैं यह जानकर ब्र० शीतलप्रसाद जी बीना आये। उनके प्रति समाजमें कुछ कारणोंसे रोष होनेसे, उनका विरोध होने लगा। इसलिये पिताजी के सामने कठिन समस्या उपस्थित हो गयी। किसी तरह पिताजीने उनका निर्वाह किया व रातमें उनके व्याख्यान के लिये सार्वजनिक सभा बुलायी। सभा के दौरान सभाके मंत्रीका पत्र मिला कि आप इस सभाको बन्द करायें अन्यथा समाजको इसपर विचार करना पड़ेगा। किन्तु पिताजीको मालूम था कि बीना समाजने ब्रह्मचारीजीका बहिष्कार नहीं किया है, इसलिये पिताजीने आजीविकाकी न चिन्ता करते हुए भी सार्वजनिक रूपसे यह घोषणा कर दी कि सभाके मंत्रीका वह पत्र व्यक्तिगत ही समझा जाये तथा सभाको बराबर चालू रखा । बीनामें जिस मकान में मास्टर कनछेदीलालजी रहते थे उसीमें पिताजी भी रहते थे । इसलिये पिताजी का मास्टर सा० से अच्छा सम्बन्ध होनेके कारण उनकी पत्नीका देहावसान होनेपर अंतिम संस्कारकी पूरी व्यवस्था पिताजीको ही करनी पड़ी। मा० साहबकी पत्नीके पास सोनेका काफी जेवर था। दाह संस्कारके समय उनके शरीरसे और जेवर तो उतार लिया गया, परन्तु बाहोंपर सोनेकी बखुरियोंपर किसीका ध्यान नहीं गया क्योंकि वे ब्लाउजके अन्दर थीं । तीसरे दिन श्री पं० जगन्मोहनलालजी शास्त्री भी आ गये थे, क्योंकि उनका मास्टर सा० से स्नेह सम्बन्ध था । अतः पिताजी व पंडितजी दोनों ही राख समेटनेके लिये श्मशान भूमि गये। राख समेटते हुए बरियाँ हाथमें आ गई। उन्हें देखकर पंडितजीने पिताजीको यह सलाह दी कि वे अपने पास ही उनको रख लें और जब मास्टर सा० को याद आये तब उन्हें सौंप दें। किन्तु पिताजीने कहा, 'हम साधारण परिस्थिति के आदमी हैं। लोग समझेंगे कि पानी नहीं, इसलिये बता रहे हैं। अतः अभी चलकर उन्हें सौंप देना चाहिये, स्नान बादमें करेंगे ।' बीना पाठशालाकी आर्थिक स्थिति कमजोर हो जानेके कारण पिताजीको बीनासे नातेपुते (सोलापुर) जाना पड़ा। वहाँ पिताजी लगभग छः वर्ष रहे । वहाँपर भी उनकी राजनीतिक व सामाजिक गतिविधियाँ बराबर चालू रहीं । राजनीतिक दृष्टिसे वे कॉंग्रेस कमेटीके सदस्य होने के नाते नातेपुते (सोलापुर) में हुए जिला कांग्रेस अघिवेशन में तथा श्री नरीमैनकी अध्यक्षतायें हुए पूनाके तथा लोहपुरुष बल्लभभाई पटेलकी अध्यक्षता में हुए यवतमालके प्रांतीय कांग्रेस अधिवेशनोंमें सम्मिलित हुए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012004
Book TitleFulchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain, Kailashchandra Shastri
PublisherSiddhantacharya Pt Fulchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Varanasi
Publication Year1985
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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