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________________ द्वितीय खण्ड : ४९ लिये जाते थे। फलस्वरूप वहाँसे २५) रु० तथा विद्यालयसे ५०) रु० वेतन मिलता था। इससे वे अपना और अपने भाइयों सहित परिवारके निर्वाहमें सहयोग करते रहे। इस प्रकार बनारसमें लगभग चार वर्ष निकल गये । कारण विशेष होनेपर सन् १९२८ में वे त्यागपत्र देकर सिलावन लौट आये। किसी कार्यवश पिताजीको बीना जानेका अवसर मिल गया। उस दौरान वहाँकी समाजने पिताजीको शास्त्रसभाके लिये आमंत्रित किया। उन्होंने सभामें प्रवचन किया। उसे सुनकर स्व० श्रीमान् सिंघई परमानन्दजीने अपनी गोदीमें बिठा लिया और बोले, 'पाठशालाके लिये ऐसा ही विद्वान् चाहिये ।' अन्तमें प्रधानाध्यापक पदपर पिताजीकी नियुक्ति हो गयी । वहाँपर ६०) रु० महीना वेतन निश्चित हुआ। पाठशाला खुलनेपर पिताजीने वहाँका काम सम्भाल लिया। कुछ समय तो कार्य करते ही निकल गया। बादमें उनके विचारमें आया कि अपने भाइयों सहित पूरे कुटुम्बको बुलाकर उनके लिये दुकान क्यों न खुलवा दी जाये। उस समय एक दुकान भी खाली हो रही थी। इसलिये उन्होंने सबको बीना बुला लिया और उन्हें दुकान करवाकर सब साथमें रहने लगे। इस कालमें स्व० श्री सिंघईजीसे स्नेह स्थापित हो गया और उनके जीवन पर्यन्त बना रहा । सिंघईजीको कोई सन्तान नहीं थी। अतः स्वर्गवास होनेके पूर्व पिताजी की सलाहसे उन्होंने अपने कुटुम्बके एक लड़केको बुलाकर उसको गोद ले लिया। पिताजीकी राजनीतिक गतिविधियोंका जिक्र हम पहले भी कर चुके हैं। बीनामें रहते हुए उनकी यह गतिविधियाँ बराबर जारी रहीं और वे कांग्रेसके आंदोलनोंमें भी शरीक होने लगे। वे छात्रों और जनताको लेकर जुलूस निकालते रहे तथा विदेशी वस्त्रोंके बहिष्कारमें सक्रिय सहयोग देते रहे। इसके लिये उन्होंने एक युक्ति यह निकाली थी कि मंदिरमें देशी वस्त्र रखवा देते थे। जो भी महिला विदेशी साड़ी पहनकर आये वह उतारकर देशी साड़ी पहन जाये। बीनामें पिताजी चार वर्षों तक रहे और राजनीतिक आन्दोलनके अलावा वे कई सामाजिक आन्दोलन चलाते रहे । इनमें समैयाओंको मिलाना मुख्य है । हिम्मत, जूझनेकी प्रवृत्ति व निस्पृहता पिताजीमें कूट-कूटकर भरी है इसका प्रमाणस्वरूप ये कुछ चुनी हुई घटनाएँ दी जाती है। श्रा प० कमलकुमारजी व्याकरणतीर्थ बनारसमें पढ़ते थे। वे अंतिम वर्षकी परीक्षामें फेल हो गये थे। उन्होंने बीनामें पिताजीको लिखा । पिताजीने उनको बीना बला लिया और समाजसे छात्रवत्ति निश्चिा दी। कुछ दिन वे बीनामें पढ़ाते रहे और फिर उन्हें परीक्षा आदि देनेके लिये छुट्टी देकर बनारस भेज दिया । परीक्षा देकर वे पुनः बीना आ गये। उसी समय विद्यार्थी छोटेलाल पिताजीके पास आया और कमलकुमारजीके साथ अपनी बहनकी शादी करानेको कहने लगा। पं० कमलकुमारजीसे पूछनेपर उन्होंने आर्थिक स्थितिकी कठिनाई बतलाई, किन्तु समझानेपर वे विवाहके लिये तैयार हो गये। आर्थिक स्थितिमें जो कठिनाई थी उसका हल निकालकर यह विवाह सम्पन्न करा दिया। समैया समाज, परवार समाजका एक अंग है, यह समझकर पिताजीकी हमेशा यह इच्छा रही है कि इन दोनों समाजोंको एक हो जाना चाहिये । आगासौद वाले सेठ मन्नूलालजीसे पिताजीका अच्छा सम्पर्क था। इसलिये उनके आग्रहपर पिताजी मल्हारगढ़ निसईजीके वार्षिकोत्सवमें सम्मिलित हए। वहाँ पहुँचनेपर ज्ञात हुआ कि मल्हारगढ़की जैन समाजके भाई आमंत्रण देनेपर भी समैया समाजके प्रीतिभोजमें सम्मिलित नहीं होते है। इस कारण वहाँकी जैन समाजने पिताजीको भी अलगसे भोजनके लिये आमंत्रित किया जिससे वे भी प्रीतिभोजमें सम्मिलित न हो सके। परन्तु पिताजीने उनकी बात अनसुनी कर दी एवं समाजके लोगोंको ही प्रीतिभोजमें शामिल होनेके लिये राजी कर लिया। इसमे दोनों समाजोंमें मेलका वातावरण बननेकी अनुकूल स्थिति दिखाई देने लगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012004
Book TitleFulchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain, Kailashchandra Shastri
PublisherSiddhantacharya Pt Fulchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Varanasi
Publication Year1985
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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