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________________ ४४ : सिद्धान्ताचार्य पं० फूलचन्द्र शास्त्री अभिनन्दन ग्रन्थे इसी तरह सामाजिक कार्योंमें सहयोग दिया है, वर्णी कालेज ललितपुर को चन्दा खुब किया है, गुरुकुल और तीर्थ क्षेत्रों को काफी दान दिलाया, वर्णी ग्रन्थमाला स्थापित करके समृद्ध बनाया, जैन जाति की सेवा में बीता जिनका जीवन है, पंडित फूलचन्द्र शास्त्री का शत-शत अभिनन्दन है | जानें कितनी उपाधियों से जुड़ा आपका नाता, पूरी पुस्तक भर सकतो यदि खोलें इनका खाता, वीर प्रभू से यही विनय है इन्हें रहे सुख साता, जुग जुग जिये मार्ग दर्शन दें रक्षा करें विधाता, ये वाणीके जादूगर हैं 'काका' इन्हें नमन है, श्रीमान् फूलचन्द्र शास्त्री का शत-शत अभिनन्दन हैं । Jain Education International हों शतायु काटें भव बंधन वैद्य कपूरचंद्र विद्यार्थी, दमोह जो सेवा के लिए समर्पित, जिनका तन मन सदा रहा है । जिनवाणी श्रुत के प्रणयन हित संघर्षो का क्लेश सहा है ॥ १ ॥ जैनतत्त्वमीमांसा. कहती, विद्वत्ता की गहन कहानी । महाबंध .के. संपादन में, अतिशयताकी भरी निशानी ॥ ३ ॥ जिनने, षट्खंडागम दुर्लभ संपादन कर सुलभ बनाया । टीका धवला जयधवला की, करके जन जन को समझाया ॥ २ ॥ For Private & Personal Use Only शील स्वभाव मौन सेवा व्रत, जिनवाणी का पाठन चिंतन । हर क्षण जिनका ध्येय रहा है, अन्वेषण शोधन थुति बंधन ॥ ४ ॥ ऐसे जिन सिद्धान्त शिरोमणि, फूलचंद्र जी का अभिनन्दन । करते मधु मुद मय भावों से, हो शतायु काटें भव बंधन ।। ५ ।। www.jainelibrary.org
SR No.012004
Book TitleFulchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain, Kailashchandra Shastri
PublisherSiddhantacharya Pt Fulchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Varanasi
Publication Year1985
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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