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________________ ४० : सिद्धान्ताचार्य पं० फूलचन्द्र शास्त्री अभिनन्दन-ग्रन्थ प्रेरणास्पद व्यक्तित्व .श्री दीनानाथ तिवारी, बीना सिद्धान्ताचार्य पंडित फूलचन्द्रजी शास्त्री अभिनन्दन ग्रन्थ योजना, निस्सन्देह, प्रेरणास्पद विकासोन्मुख, मार्ग दर्शक व्यक्तित्वका समुचित सम्मान ही नहीं, वरन् समाज, साहित्य, एवं अध्यात्म के माध्यमसे राष्ट्र सेवाका वास्तविक मूल्यांकन है। देशभक्त पंडितजी .५० दरबारीलाल जैन, ललितपुर पं० फूलचन्द्रजी सिद्धान्तशास्त्री जैन समाजके ही नहीं अपितु भारतके मान्य विद्वानोंमें अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं। सन् १९४२ भारतवर्षके इतिहासमें एक मीलके पत्थरकी भांति स्वतन्त्रताकी यात्राका बोध कराता है। इस वर्ष जुलाईमें मैंने श्री स्याद्वाद महाविद्यालय, वाराणसी अध्ययन हेतु प्रवेश लिया था। अभी मैं विद्यालय और काशीके वातावरणसे परिचित भी नहीं हो पाया था कि ९ अगस्त ४२ को "भारत छोड़ो" आन्दोलन आरम्भ हो गया। बनारसमें ४२ के आन्दोलनमें विद्यार्थी वर्गका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। शिक्षा जगतमें भी पंडितजीकी सेवायें चिरस्मरणीय है । ललितपुरमें श्री वर्णी जैन कालेजकी स्थापनामें पंडितजीका महत्त्वपूर्ण योगदान है। पार्श्वनाथ जैन गुरुकुल, खुरईके लिए विपुल धनराशि संग्रह करनेमें उन्हें बहुत याद किया जाता है । वे कहते हैं 'देश और समाजके हितके लिए अपने को बड़े से बड़े खतरेमें डालनेसे मत चूको, तुम्हें सफलता अवश्य प्राप्त होगी।' पिततल्य व्यक्तित्व .श्री मुन्नालाल जैन, वाराणसी मझे पूज्य पंडितजीके घर उनके सहायकके रूपमें कुछ महीने रहनेका सौभाग्य मिला है। इस वृद्धावस्थामें भी मैंने देखा कि उन्हें कार्य करनेका युवाओं जैसा उत्साह है। वे निरन्तर लेखन और सम्पादन कार्यों में लगे रहते हैं। अनेक शोधकर्ता और जिज्ञासु उनके घर निरन्तर आते और अपनी शोध तथा अविविध जटिलसमस्याओंका सप्रमाण समाधान पाकर सन्तुष्ट हो चले जाते । मैंने भी अनेक दार्शनिक और आगमिक बातोंकी जानकारी लेनेका लाभ उठाया। मझे उनके साथ सहायकके रूपमें ही महाराष्ट्र और कर्नाटक प्रान्तके अनेक स्थानोंकी यात्राका सौभाग्य मिला । उनका जगह-जगह भव्य स्वागत और प्रवचन चलता था। वे मुझ जैसे छात्रकी भी सुविधाओंका पूरा ध्यान रखते। मैंने अनुभव किया कि उनके सम्पर्कमें आनेवाले सभीके प्रति समानरूपसे पितातुल्य स्नेह और उन्नतिकी चाह है उनमें मेरी शुभकामना है कि वे शतायु हों और सदा हम लोगोंका मार्गदर्शन करते रहें। आदरणीय गुरुजी •श्री भैयालाल पुरोहित, बीना। जिस समय पंडितजी श्री नाभिनन्दन दिगम्बर जैन विद्यालय, बीनाके प्रधानाध्यापकके पदपर आसीन थे उस समय विद्यार्थीके रूपमें मैं विद्याध्ययन करता था । वास्तवमे योग्य गुरुमें जो गुरु स्वभाव होना चाहिये वह पूर्णरूपेण पाया । मुझे ही क्या पूरे शिष्य समुदायका उनके प्रति भक्तिका अनुराग भूलता न था । उन जैसी पाठ शैली विरले गरुमें ही पायी जाती है। उनकी देनसे मैं कुछ सम्पन्नताकी ओर आकर योग्य समाजमें बैठ पाया । मेरा जीवन उनकी कृपाका फल है। अभिनन्दनकी सफलताका आकांक्षी हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012004
Book TitleFulchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain, Kailashchandra Shastri
PublisherSiddhantacharya Pt Fulchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Varanasi
Publication Year1985
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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