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________________ ३८ : सिद्धान्ताचार्य पं० फूलचन्द्र शास्त्री अभिनन्दन-ग्रन्थ पुण्यपुरुष •पं० विमलकुमार जैन सौंरया, टीकमगढ़ ___ श्रद्धेय पूज्य पण्डित फूलचन्द्रजी सिद्धान्तशास्त्री ज्हाँ सिद्धान्तके महामना हैं वहाँ समाज और संस्कृतिकी सेवामें ऐसे ही अनुपम हैं । जिनवाणीकी जो महती सेवा करके युगों-युगों तक जन-जनका जो उपकार किया अवश्य ऐसे पुण्य पुरुषके कृतित्व एवं व्यक्तित्वसे हमारी समाज अपने आपमें गौरवान्वित है। अपने इन्हीं विशेष गुणोंके कारण पूज्य श्रद्धेय पण्डित फलचन्द्रजी गुण गरिमाके सागर बन गये। ऐसे महान व्यक्तित्वके चरणोंमें मैं श्रद्धापूर्वक प्रणाम करता हआ उनके सुखी दीर्घ यशस्वी जीवनके प्रति जिनेन्द्र प्रभुसे प्रार्थना करता हूँ। सातिशय प्रज्ञाके धनी .श्री राजमल जैन, भोपाल सिद्धान्ताचार्य श्रद्धेय पण्डित फूलचन्द्रजी शास्त्री जो कि जैन जगत्के महान् सिद्धान्तवेत्ता, सातिशय जिनवाणी माताके गढतम रहस्योंके मर्मज्ञ विद्वान एवं आत्मसाधकके विषयमें आज कौन परिचित नहीं है। वे लगभग ६० वर्षसे सर्वज्ञ प्रणीत सिद्धान्तोंकी सेवामें निःस्वार्थ भावसे कार्यरत है । आपकी लेखनीसे लिखे गये करणानुयोगके मल आगम-धवला जयधवला एवं महाबंधादि अनेक-अनेक उच्चकोटिके ग्रन्थोंके सम्पादक एवं अनुवादक, अनेक मौलिक कृतियोंके लेखक एवं निबन्ध लेखनके द्वारा हम जैसे अज्ञानियोंका जो उपकार किया है, उसके लिए हम चिर ऋणी रहेंगे। कुछ वर्षोसे पू० १०८ मुनि विद्यासागरजीकी प्रेरणासे करणानुयोगके मूल आगम धवणादि ग्रन्थोंका ग्रीष्म कालमें लगभग १॥-२ माह तक वाचनका क्रम चल रहा है। मैंने स्वयं इस सुअवसर पर सागर एवं जबलपुर जाकर कई दिनों तक काम किया। पंडितजीका जीवन लोकेषणा एवं वित्तषणासे परे है। उन्होंने आगम-अध्यात्ममें वर्णित तथ्योंको मात्र शब्दों या धारणामें ही ग्रहण नहीं किया है, बल्कि अपने दैनिक जीवन में भी उसको अपनाया है। ऐसे जैन समाजके सर्वोत्कृष्ट विद्वान् पंडितजीके इस अभिनन्दन समारोह पर मैं अपने श्रद्धा सुमन उनके चरणोंमें समर्पित करते हुए उनके दीघ्रजीवी होनेकी हृदयसे भावना करता है। आत्मबलके धनी •श्री कपूरचन्द भाईजी, बंडा पिछली अर्ध शताब्दीमें 'पूज्य वर्णीजी' द्वारा निखारे रत्नोंकी मालामें, 'पूज्य पंडित प्रवर फूलचन्द्रजी' सिद्धान्तशास्त्री अत्यन्त चमकते हुए विद्वत्रत्न है। उनके द्वारा अनेक सिद्धान्त ग्रन्थोंकी टीका व अनेकानेक मौलिक लेखों व ग्रन्थोंमें पूज्य पंडित श्री ने अनेक सिद्धान्त गुत्थियोंको सहज ही सुलझाया है। हर सिद्धान्त विषय पर उनका दिया गया निर्णयात्मक उत्तर हर तत्त्वजिज्ञासु को स्वीकार होता है। आज भी उनकी कलम निरन्तर इस जीवन संध्यामें, जब बाह्य स्वास्थ्य भी साथ नहीं देता, अपने अन्तरके बल पर चलती रहती है; मुमुक्षुओंका मार्ग प्रशस्त करती रहती है। हम पंचपरमेष्ठी भगवन्तोंको स्मरण कर कामना करते हैं कि शतायुके पूर्ति पर उसकी हम सब अमृत जयन्ती मनाएँ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012004
Book TitleFulchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain, Kailashchandra Shastri
PublisherSiddhantacharya Pt Fulchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Varanasi
Publication Year1985
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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