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________________ ३८० : सिद्धान्ताचार्य पं० फूलचन्द्र शास्त्री अभिनन्दन-ग्रन्थ पुराणकी रचना की है। यह पट्ट मूलसंघ कुंदकुंदाम्नायके अन्तर्गत सरस्वतीगच्छ बलात्कारगणके आम्नायको माननेवाला था। चांदखेड़ीके एक शिलालेखमें इसे परवार भट्टारक पट्ट भी कहा गया है। श्री भट्टारक पदमकीतिके समकक्ष दूसरे भट्टारकका नाम भी चन्द्रकीर्ति था। सम्भवतः ये ( के पट्टधर भट्टारक थे । चंदेरी पट्टके १०वें भट्टारक श्री सुरेन्द्रकीर्ति थे। उन्होंने ही अपने गुरु श्री सुरेन्द्रकीर्तिके उपदेशसे भिक्षाटन द्वारा बड़े बाबाके मन्दिरका जीर्णोद्धार करानेका विचार किया था। बादमें उनकी आयु पूर्ण हो जानेपर जो वेदी आदिका कार्य थोड़ा न्यून रह गया था उसे नमिसागर ब्रह्मचारीने पूरा कराया। जिस समय यह कार्य सम्पन्न हो रहा था बुन्देलखण्डके प्रसिद्ध राजा छत्रसाल वहीं रह रहे थे। कारण कि मुसलमानोंके आक्रमणसे त्रस्त होकर वहाँ उन्हें बहुत काल तक रहना पड़ा। इससे प्रभावित होकर उन्होंने कुण्डलगिरिके तलभागमें एक विशाल सरोवरका निर्माण कराया और श्री मंदिरके लिये अनेक उपकरण भेंट किये। उनमें दो मनका पीतलका घण्टा भी था। बड़े बाबाके मंदिरके बाहर दीवालमें लगे हये विशालपट्टका यह सामान्य परिचय है। इससे इतना ही ज्ञात होता है कि वहाँ कुंडलगिरिके ऊपर एक प्राचीन जिनमंदिर था, उसमें जो बड़े बाबाकी मूर्ति विराजमान थी उसे ब्रह्मचारी नमीसागरने भगवान् महावीरकी मूर्ति समझकर इस शिलालेखमें बड़े बाबाको भगवान् महावीरकी मूर्ति कहा है। यह जिनमंदिर और दोनों ब्रह्ममंदिर इस लेखसे मालूम पड़ता है कि उसी कालमें प्रसिद्धिमें आये हैं और उसके फलस्वरूप वहाँ जनताका आना-जाना प्रारम्भ हुआ है। इस लेखका सार यह है कि बड़े बाबाका मंदिर और दोनों ब्रह्ममन्दिर ६वीं शताब्दी या उसके पूर्व के हैं। फिर भी क्षेत्ररूपमें उनकी प्रसिद्धि यद्यपि १२वीं शताब्दीमें हो गयी होगी तो भी घोर जंगल होनेसे वहाँ जनताका आना-जाना रुका हुआ था। बादमें जब बुन्देलखण्डके प्रसिद्ध महाराजा छत्रसालको मसलिम साम्राज्यपर विजय पानेके लिये कुछ कालतक यहाँ रहना पड़ा तबसे यह क्षेत्र प्रसिद्धिमें आया और वन्दनाकी दृष्टिसे जनताका आना-जाना प्रारम्भ हुआ। क्षेत्रपर जो मन्दिर निर्मित हए हैं उनके बादमें बननेका यही कारण है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012004
Book TitleFulchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain, Kailashchandra Shastri
PublisherSiddhantacharya Pt Fulchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Varanasi
Publication Year1985
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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