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________________ सिद्धक्षेत्र कुण्डलगिरि भारतवर्ष आर्यावर्तका वह भाग है जहाँसे अवसर्पिणीके चौथे कालमें और उत्सर्पिणीके तीसरे कालमें अनंतानंत मुनि मोक्ष गये हैं व जाते रहते हैं और जाते रहेंगे, इसलिये इस देशके प्रायः सभी प्रदेशोंमें जैन सिद्ध क्षेत्रोंका पाया जाना निश्चित है। इस कालमें भगवान् महावीर स्वामीके मोक्षगमनके अनन्तर गौतम स्वामी, सुधर्माचार्य और जम्बूस्वामी मोक्ष गये है। ये तीनों अनुबद्ध केवली थे। त्रिलोक प्रज्ञप्तिके उल्लेखसे मालूम पड़ता है कि श्रीधर नामके एक मुनिराज श्री कुण्डलगिरिसे मोक्ष गये हैं । ये अननुबद्ध केवली थे, इसलिये अनुबद्ध केवलियोंमें इनको गणना नहीं की गयी है। पूर्वोक्त तीन केवलियोंसे ये भिन्न है । त्रिलोक प्रज्ञप्तिका वह उल्लेख इस प्रकार है कुण्डलगिरिम्मि चरिमो केवलणाणीसु सिरिधरो सिद्धो । चारणरिसीसु चरिमो सुपासचंदाभिधाणो य ॥४-१४७९॥ "केवलज्ञानियोंमें अन्तिम केवली, श्रीधर मनि कृण्डलगिरिसे सिद्ध हए तथा चारण ऋद्धिधारी ऋषियाम अन्तिम सुपार्श्वचन्द्र नामक ऋषि हुए" ___ यह त्रिलोक प्रज्ञप्तिका पाठ है। इसकी पुष्टि प्राकृतनिर्वाण भक्तिके "णिवणकुंडली वंदे'' (॥२६॥) पाठसे भी होती है। इसमें कहा गया है कि निर्वाणक्षेत्र कुण्डलगिरिसे जो मनि सिद्ध हए हैं उनकी मैं वन्दना करता हूँ। इसीके अनुरूप संस्कृत निर्वाण भक्तिमें भी कुण्डलगिरिको सिद्धक्षेत्र स्वीकार करते हए वह गिरि कहाँ पर है, इसका भी भले प्रकार निर्देश कर दिया गया है। संस्कृत निर्वाण भक्तिका वह पाठ इस प्रकार है द्रोणीमति प्रबलकुडलमेंढ़के च वैभारपर्वततले वरसिद्धकूटे । ऋष्याद्रिके च विपुलाद्रिबलाहके च विन्ध्ये च पौदनपुरे वृषदीपके च ॥२९॥ द्रोणीगिरि, कुण्डलगिरि, मुक्तागिरि कुण्डलगिरिका तल भाग सिद्धवरकूट ऋषिगिरि, विपुलगिरि, वागहकगिरि विन्ध्य, पोदनपुर और वृषदीपसे जो सिद्ध हुए उनकी मैं वन्दना करता हूँ। यह संस्कृत निर्वाण भक्तिका पाठ है। इसमें द्रोणगिरि और मुक्तागिरिके मध्यमें कुण्डलिगिरिका नाम आया है । आचार्य पूज्यपादका यह कथन सोद्देश्य होना चाहिये । उससे निश्चित होता है कि इन दोनों गिरियों के मध्यमें कहीं कुण्डलगिरि अवस्थित है। इस प्रकार उक्त तीन आगमिक उल्लेखोंसे हम जानते हैं कि इन आगमोंमें जिस कुण्डलगिरिको सिद्धक्षेत्र स्वीकार किया गया है, वह यही कुण्डलगिरि है और श्रीधर मुनिराज यहींसे मोक्ष गये हैं। प्रदेशका निर्णय इस प्रकार निर्वाण भक्तिके उक्त उल्लेखसे यह तो निर्णय हो जाता है कि दमोहके पासका कुण्डलगिरि ही श्रीधर स्वामीका निर्वाण स्थान है। फिर भी अन्य प्रमाणोंसे भी हम यह निर्णय करेंगे कि वह कुंडलगिरि दमोह जिलेमें ही अवस्थित है या उसका अन्य प्रदेशमें होना संभव है। आगे इसका सागोपांग विचार करते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012004
Book TitleFulchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain, Kailashchandra Shastri
PublisherSiddhantacharya Pt Fulchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Varanasi
Publication Year1985
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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