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________________ चतुर्थ खण्ड : ३४९ प्रभेद ४ भारतवर्षमें जिनधर्मको अंगीकार करनेवाली जिन ८४ जातियोंके नाम विविध ग्रन्थों में लिखे मिलते हैं, उनके नामोंमें बड़ी गड़बड़ी पायी जाती है। 'प्राग्वाट इतिहास' के भूमिका लेखक श्री अगरचन्दजी नाहटाने अपनी भूमिकामें पृ० १४ पर १६१ जातियों के नाम गिनाते हए उसके प्रारंभमें लिखा है "वैश्योंकी जातियोंकी संख्या चौरासी बतलाई जाती है। पन्द्रहवीं शताब्दीसे पहलेके किसी ग्रन्थमें मुझको उनकी नामावलि देखनेको नहीं मिली। जो नामावलियाँ पन्द्रहवीसे अटारहवीं शताब्दीकी मिली हैं, उनके नामोंमें पारस्परिक बहुत अधिक गड़बड़ है। पाँच चौरासी जातियोंकी नामोंकी सूचीसे हमने जब एक अकारादि सूची बनाई तो उनमें आये हुए नामोंकी सूची १६० के लगभग पहुँच गई। इनमेंसे कई नाम तो अशुद्ध हैं और कई का उल्लेख कहीं भी देखने में नहीं आता और कई विचित्र-से हैं। अतः इनमेंसे छांटकर जो ठीक लगे उनको सूची दे रहा हूँ।" भूमिका-लेखककी इस टिप्पणीको पढ़कर हमें बड़ा आश्चर्य हुआ। लेखकको चौरासी जातियोंकी जो पाँच सूचियाँ मिली थीं उनको अविकल उसी रूपमें दे देते, तो संभव था कि उस आधारपर कुछ तथ्यात्मक प्रकाश पड़ता । किन्तु ऐसा न करके उन्होंने अपनी इच्छानुसार जो विस्तृत सूची बनाई है, उससे वस्तु स्थितिको समझने में अवश्य ही कठिनाई आती है; क्योंकि लेखकको जो पाँच सूचियाँ मिली थीं वे प्रदेश-भेदकी होनी चाहिये। अतः उन्हें यथावत् रूपमें छाप देते, तो उनके आधारपर प्रदेश-भेदसे किस प्रदेशमें कौन जातियाँ बसती थों, इसे समझने में बड़ी सहायता मिलती । तत्काल हमारे सामने लेखक द्वारा संकलित की गयी १६१ जातियों के नामोंकी विस्तृत सूची तो है ही, साथ ही श्री कवि बखतराम द्वारा संकलित ८४ जातियोंकी एक सूची, प्रो० श्री डॉ. विलास आदिनाथ संघवी-राजाराम कॉलेज कोल्हापुर द्वारा संकलित ८३ जातियोंकी एक सूची, तथा उन्हीं के द्वारा संकलित श्री जैन पी० डी० वाली एक सूची, प्रो० एच० एच०-विल्सन द्वारा संकलित एक सूची, गुजरात प्रोविन्सकी एक सूची तथा डेक्कन (दक्षिण)की एक सूची, ऐसी कुल ६-७ सूचियाँ हैं । उनमेंसे श्री साह बखतराम कवि द्वारा संकलित जो ८४ जातियोकी सूची है उसमें उन्होंने पौरपाट (परवार) जातिके जिन सात खांपों (भेदों) की चर्चा की है, उनके नाम उन्हीके शब्दोंमें इस प्रक सातं खापं पुरवार कहाये, तिनको तुमको नाम सुनावे ॥६७६।। अठसष्षा फनि है चौसष्षा, सेहसरड़ा फनि है दो सष्षा । सोरठिया अर गांगड़ जानौं, पद्मावत्या सप्तमां मानौ ॥६८७।। इस कवितामें कविने जिनने सात नामोंको गिनाया है वे इस प्रकार है-१. अठसखा, २. चौसखा, ३. छ:सखा, ४. दो सखा, ५. सोरठिया, ६. गांगड़ और ७. पद्मावती । १. श्री प्रो० डा० विलास आदिनाथ संघवी द्वारा संकलित प्रथम सूचीमें उन्होंने पौरपाट (परवार) जातिके सात उपभेदोंका उल्लेख न करके मात्र एक परवार नामका ही उसमें उल्लेख किया है और उसका निकास पारानगरसे लिखा है। (इस सूचीमें पौरवाड़ जातिका अलगसे नाम आया है और उसका निकास पारेवा नगरसे लिखा है।) इसमें अन्य जिन जातियोंसे नाम आये हैं उनके निकास स्थानका भी निर्देश किया गया है। २. श्री पी० डी० द्वारा जिन ८४ जातियोंका संकलन किया गया है उनमें परवार जातिके नामका ही एक उल्लेख है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012004
Book TitleFulchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain, Kailashchandra Shastri
PublisherSiddhantacharya Pt Fulchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Varanasi
Publication Year1985
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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