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________________ १०० : सिद्धान्ताचार्य पं० फ्लचन्द्र शास्त्री अभिनन्दन-ग्रन्थं दिगम्बर जैनसंघके कुंडलपुर अधिवेशनमें संघके सभापति चने गये थे। अतः संघके कार्योंके सिलसिलेमें भाई साहबका अक्सर डोंगरगढ़ आना होता था। इस प्रकार हमारे परिवारसे उनका पारिवारिक सम्बन्ध बन गया था। सन १९५२में मैं अपने भतीजे श्री प्रकाशचन्द, राजेन्द्र एवं सरोज (भतीजी) के साथ उत्तर भारतका भ्रमण करते हए बनारस पहुँची । स्व० सेठजी कई धार्मिक एवं समाजसेवी संस्थानोंसे संलग्न होने के कारण काफी व्यस्त रहते थे, कारण हम लोगोंके साथ नहीं जा सके थे। हम लोगोंके बनारस पहुँचनेपर भाई फूलचन्द्रजी साहबका आग्रह हुआ कि हम उनके घर पर ही रुकें और बनारसके रहते तक भोजन भी उनकी रसोईमें ही करें । बड़े भाईका आदेश कैसे टाल सकती थी । भाई साहब व भाभीजीने हमें यह सोचनेका अवसर ही नहीं दिया कि हम अपने घरसे बाहर हैं। उस समय वर्णी शोध संस्थानके नये भवनका निर्माण कार्य सुचारु पूर्वक चल रहा था। इस भवनके निर्माणमें इन मनीषियों द्वारा किया गया अथक परिश्रम, त्याग एवं लगन शीघ्र ही साकार हो गया। हमें भी इस पुनीत कार्य में अपना सहयोग देनेका सौभाग्य प्राप्त हुआ। इसके कई वर्षों बाद स्व० सेठजी साहब कुंभोज बाहुबलि जानेका प्रोग्राम बनाये । हमारे सौभाग्यसे उस समय भाई साहब डोंगरगढ़ आये थे । स्व. सेठ साहबके अनुरोध पर वे हम लोगों के साथ यात्रामें जानेके लिए तत्पर हो गये । हमारा यह सौभाग्य रहा कि इतने महान् व्यक्तिके साथ हमें तीर्थयात्राका अवसर मिला तथा भाई साहब प्रत्येक जैन तीर्थ जहाँ हम गये उनका इतिहास एवं उसके सम्बन्धमें अपने अक्षय ज्ञानभंडारसे महत्त्वपूर्ण जानकारी देते रहते । जिसके कारण हमें तीर्थ यात्राके साथ-साथ धर्म ज्ञानका लाभ भी मिलता रहता । इसी दौरान सौभाग्यसे श्री पूज्य १०८ आचार्य समन्तभद्र महाराजश्री का दर्शन लाभ हुआ तथा श्री पूज्य गजाबेनसे भी परिचय हुआ । प्रवचन सुना तथा शिक्षा भी मिली । उसके बाद लगभग १५ वर्ष पूर्व भाई साहबसे कलकत्तामें भेंट हुई। पर्युषण पर्वके अवसरपर पूज्य स्व० सेठ साहब और सरोजके साथ कलकत्ता गयी थी। उस समय भाई साहब कलकत्तामें थे । वहाँ भी उनके आग्रहको ध्यानमें रखते हुए हमें उनका आतिथ्य स्वीकार करना पड़ा। उन्हें हमारे कारण काफी असुविधा उठानी पड़ती। परन्तु, उनके चेहरेपर सदा मुस्कुराहट और आत्मीयताकी झलक मिलती रहती। उनकी निश्छल स्नेह, मधुर व्यवहार एवं शालीनतामें आजन्म नहीं भूल सकती। सिद्धान्ताचार्य पंडित फलचन्द्रजी शास्त्रीके विषयमें जो भी लिखा जाय कम है। वे जैनदर्शनके मूर्धन्य विद्वान् है । साहित्यके प्रचार, प्रसार एवं सृजनमें उनका योगदान अविस्मरणीय है। भाई फूलचन्द्रजी जैनधर्मके प्राकृत भाषामें लिखे गये प्राचीन ग्रन्थोंका शोधकर उनको सरल भाषामें प्रकाशित करनेमें भगोरथ प्रयास किया तथा उनकी अनवरत साधनाके फलस्वरूप जैन साहित्यकी जिस ज्ञान गंगाका उद्गम हुआ उसकी पावन धारामें आनेवाले सैकड़ों वर्षों तक लाखों प्राणी अपना अज्ञान कालुस्य धोते हुए नई ज्योति और नई दिशा प्राप्त करते रहेंगे । इन्हीं शुभ-कामनाओंके साथ मैं हार्दिक अभिनन्दन करती हूँ तथा उनके शतायुको कामना करती हूँ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012004
Book TitleFulchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain, Kailashchandra Shastri
PublisherSiddhantacharya Pt Fulchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Varanasi
Publication Year1985
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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