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________________ तृतीय खण्ड : ८९ मेरे श्रद्धा सुमन .श्रीमती चंचलाबेन शाह, बम्बई विद्वद्वर्य पण्डित फुलचंद सिद्धांतशास्त्रीजीसे मेरा परिचय बहुत पुराना है । नातेपुते, फलटण, बाहुबली, कारंजा और बम्बई पोदनपुर वगैर जगहमें उनका धर्मोपदेश सुन पायी हूँ। करणानुयोगके वे तो विशेष अभ्यासी होनेसे धवलादि ग्रन्थोंका संपादन कर सके है । तथा और अनुयोगका भी उनका अभ्यास होनेसे उनके प्रवचनमें चारों अनुयोगका समन्वयात्मक मर्म (वीतराग विज्ञानताका) सरलतासे श्रोताओंको आकलन कराते हैं। तत्त्वार्थसूत्रसे लेकर धवलादि ग्रन्थ तथा तत्वमीमांसा जैसा उनका स्वतन्त्र ग्रन्थ संपादन मौलिकता रखता है। वे स्त्री शिक्षाके प्रेमी है तथा स्वातंत्र्य सैनिक भी हैं। उनको स्वस्थ शतायुष प्राप्त हो और जैनधर्म प्रभावना हो ऐसी श्री जिनेश्वर चरणमें मेरी प्रार्थना है । प्रेरक व्यक्तित्व .श्रीमती सरयु दफ्तरी, बम्बई प० पू० १०८ एलाचार्य मुनिधी विद्यानंदजी महाराजके बोरिवलीके चातुर्मास कालमें पूज्य पण्डितजी के मार्गदर्शनमें स्वाध्याय द्वारा आत्मकल्याणके नजदीक जानेका जो सुवर्ण अवसर मिला, उस संदर्भमें मुझे बहुत ही आनंद हो रहा है । यह सौभाग्य बहुत ही कम लोगोंको मिलता है और यह मेरे पल्लेमें पड़ा यह बात मेरे जीवनमें बड़ी महत्ता रखती है। ___इस उम्रमें भी आपने जिस उत्साहसे शास्त्रका निरूपण किया और आपकी दिनचर्या प्रफुल्लित एवं कार्यान्वित रखी वह देखकर मैं सचमुच अचरजमें पड़ गई। परम पूज्य एलाचार्य महाराजजीने भी इस संदर्भ में समाधान अभिव्यक्त किया है। आपके इस मंगल कार्य के प्रति आभार प्रदर्शित करना शायद औपचारिकता होगी । फिर भी मेरे इस भावको आप तक पहुँचाना मेरा आनंदनिधान है। अहिसा परमो धर्मः। मेरे दृष्टिदाता विद्यागुरु •श्रीमती गजाबेन, बाहुबली आदरणीय पण्डित फूलचंदजी मेरे विद्यागुरु रहे। उनके द्वारा हमारा लब्धिसारका अध्ययन हुआ। जैनतत्त्वज्ञानमें जो प्रवेश पाया और दृष्टि मिली वह तो वास्तव में उनका महान् उपकार है। करणानुयोग, द्रव्यानुयोग तथा चरणानुयोगमें सर्वत्र उनकी गति है । धवला, महाबंध आदि सिद्धान्त ग्रंथोंके ज्ञाताओंमें उनका स्थान वर्तमानमें सर्वतोपरि है। खासकर अध्यात्म और करणानुयोग सिद्धान्त इनका मिलान करके वे कैसे परस्पर पूरक है यह दिखलाना उनकी विद्वत्ताकी खास विशेषता है । जीवन भर अव्यभिचारी निष्ठासे जैनागम और जैनतत्त्वज्ञानका गंभीर तलस्पर्शी अध्ययन किया उस मंथनमेंसे जैनतत्त्वमीमांसाका उदय हआ है । उन्होंने जीवन भर दिगंबर जैन साहित्यकी सेवा की वह समाज दीर्घकाल तक स्मरण रखेगी । एक जैनतत्त्वमीमांसा ग्रन्थ उनके अध्ययन तथा मननकी गहराई तथा विद्वत्ताका परिचायक है। उन्हें जैन साहित्यकी सेवाके लिए दी निरामय आयु प्राप्त हो यही मंगल भावना । १२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012004
Book TitleFulchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain, Kailashchandra Shastri
PublisherSiddhantacharya Pt Fulchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Varanasi
Publication Year1985
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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