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________________ ८८ : सिद्धान्ताचार्य पं० फूलचन्द्र शास्त्री अभिनन्दन-ग्रन्थ उनका सबसे बड़ा गण यह है कि वे व्यक्तिके कष्टमें उसके न केवठ मनोबलको बढ़ाते हैं, अपितु उसे सहानुभूतिके साथ संभव सहयोग करते हैं । वीर सेवा मन्दिर, दिल्लीको जब हमने छोड़ दिया और जैन पुस्तकभण्डार खोलकर स्वतंत्र व्यवसाय करने लगे तो पण्डितजीने हमें श्री गणेश वर्णी दि० जैन ग्रन्थमालासे बहुतसे ग्रन्थ उधार भिजा दिये तथा लिखा कि और जरूरत हो तो निःसंकोच मंगा लेना। उनकी साहित्यिक एवं सामाजिक सेवाओंको समाज कभी नहीं भूलेगा। हमारी इस मंगलमय अवसर पर उन्हें शत-शत मंगल-कामनाएँ हैं वे शतायुः हों और समाज एवं वाङ्मयकी सेवा में सतत संलग्न रहें । समाजके ज्योति पुंज • साहु श्रेयांसप्रसाद जैन, बम्बई ___ जैन साहित्यके विकासमें पं० फूलचन्द्रजी शास्त्रीका बहुमूल्य अवदान रहा है। जैन सिद्धान्तके उच्चकोटि के ग्रन्थोंका सम्पादन तथा अनुवाद आदि लेखन कार्य में वे समाज के ज्योति पुंज माने जायेंगे । आप जैसे विद्वानको पाकर समाज स्वयं गौरवान्वित हआ है। मूडबिद्रीकी तीर्थ यात्राके समय जिन महान् सिद्धान्त ग्रन्थोंको दर्शन करके हम धन्य हो लेते थे, किन्तु जिनकी विषय वस्तु से अपरिचित रहकर केवल श्रद्धा व्यक्त करके सन्तुष्ट हो जाते थे, उन ग्रन्थोंका अध्ययन पंडितजीने बहुत धीरजसे किया और महान् परिश्रमसे उनका सम्पादन किया। भारतीय ज्ञानपीठको यह गौरव प्राप्त है कि महाधवलके जो सात भाग प्रकाशित किये उनमेंसे ६ भाग पंडितजी द्वारा सम्पादित हैं। प्राचीन प्राकृत, संस्कृत, अर्धमागधी आदि भाषाओंपर पण्डितजीका असाधारण अधिकार है। सिद्धान्तकी व्याख्या वह जिस प्रभावकारी ढंगसे प्रस्तुत करते हैं, वह उसकी शैलीका चमत्कार है । मैं तो उन्हें अपने युगका ऐसा आचार्य मानता हूँ जो भगवान महावीरको आचार्य परम्पराकी एक कड़ी है, जिसने अपना जीवन ग्रन्थोंके अध्ययन अध्यापनमें बिताया । वह यदि निर्ग्रन्थ न भी हुआ तब भी उसका पद उपाध्यायकी भाँति आदरपूर्ण है। तत्त्व-चमि उनकी क्षमता अद्वितीय है। पण्डितजीने जैन-धर्मके उदार स्वरूपकी जो व्याख्या अपनी पुस्तक वर्ण जाति और धर्ममें की है, जो ज्ञानपीठसे ही प्रकाशित हुई है, उसने मुझे बहुत प्रभावित किया है। मेरे प्रिय अनुज स्वर्गीय साहू शान्तिप्रसादजीका सौभाग्य था कि वह पण्डितजीके सम्पर्क में मुझसे अधिक आये, किन्तु पण्डितजीके साथ मेरा जो भी परिचय हुआ है उसने उनके सरल और प्रेम प्रदान करनेवाले व्यक्तित्वकी छाप सदाके लिए मेरे मनपर अंकित कर दी है। ज्ञानपीठ पूजांजलिका सम्पादन करके पण्डितजीने संस्कृत-प्राकृतके उन पाठोंका मर्म उजागर किया है, जो हम दैनिक पूजा-वन्दना में पढ़ते हैं। साहित्यिकके अतिरिक्त समाजके कार्योंमें भी पं० फुलचन्द्रजी अग्रणी रहे हैं । आप जैन समाजकी अनेक संस्थाओंसे सक्रिय रूपमें सम्बद्ध है और उनकी गतिविधियोंमें अत्यन्त निष्ठा व श्रद्धाके साथ रुचि लेते हैं । और उनको अपना बराबर मार्गदर्शन देते हैं। मुझे अ.शा है, उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व से सम्बन्धित यह ग्रन्थ सभी के लिए प्रेरणादायक होगा। पं. फूलचन्द्रजी शास्त्री के यशस्वी जीवन के लिए अपनी शुभकामनाएँ भेजता हूँ और अभिनन्दन ग्रन्थके सफल प्रकाशनकी कामना करता हूँ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012004
Book TitleFulchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain, Kailashchandra Shastri
PublisherSiddhantacharya Pt Fulchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Varanasi
Publication Year1985
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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