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________________ ८४ : सिद्धान्ताचार्य पं० फूलचन्द्र शास्त्री अभिनन्दन-ग्रन्थं पण्डितजीकी रुचि शिक्षामें भी कम नहीं है। उन्होंने कई शिक्षण-संस्थाओंमें जहाँ अध्यापन कार्य किया, वहाँ कई विद्यालयों, महाविद्यालयों और गुरुकुलोंकी नींवको भी पक्का कराया । ललितपुरका वर्णी कालेज और खुरईके दिगम्बर जैन गुरुकुलको उन्होंने विपुल धन दिलवाया, बल्कि वर्णी कालेज तो उन्होंकी सूझ-बूझका परिणाम है। जिनकी धर्म में गहरी अभिरुचि होती है, वे राजनीतिसे प्रायः दूर रहते हैं। लेकिन पण्डितजीने राजनीतिके प्रति लगाव न रखकर भी देश-प्रेमको अपने हृदयमें ऊँचा स्थान दिया है। जिस समय स्वाधीनतासंग्राम अपने अंतिम दौरमें पहुंच रहा था, पण्डितजीने व्यक्तिगत सत्याग्रहमें भाग लिया। उसके परिणामस्वरूप वह जेल गये और तीन महीने झाँसीके कारावासमें व्यतीत किये । पण्डितजी उस पीढ़ीकी विभूति हैं; जो अब धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही है। राजनीतिने देशकी एकताको ही खंडित नहीं किया है, व्यक्तिकी समग्रताको भी टुकड़े-टुकड़े कर दिया है। आदमी आज अपनेसे ही पराया हो गया है । आत्मकल्याण पर स्वार्थका पर्दा पड़ गया है और व्यष्टिके हितने समाजके हितको गौण बना दिया है । किन्तु पण्डितजी हैं कि आज भी अपनी आस्थाको अखंड बनाये रखकर उस मार्ग पर चल रहे हैं, जो आत्म हितकारी होने के साथ-साथ समाजके लिए भी लाभदायक है। यद्यपि वय और अस्वस्थताने पंडितजी भौतिक शरीरको शिथिल कर दिया है और उनका इधर-उधर आना-जाना भी बहुत कम हो गया है, फिर भी उनकी प्रज्ञा पूर्णरूपसे सचेत है और समाजको समुन्नत करने के लिए वह यथासंभव अपना योगदान दे रहे हैं। ___मैं पंडितजीका हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। वह स्वस्थ रहें, दीर्घायु हों, ऐसी मेरी कामना और प्रभुसे प्रार्थना है। उदार व्यक्तित्वके धनी • डॉ० लालबहादुर शास्त्री, दिल्ली पं० फूलचन्द्र जी सिद्धान्ताचार्य जैन समाजके उन गिने चुने विद्वानोंमेंसे हैं जिनकी सेवाएँ जैन समाजके लिये आदर्शभूत रही हैं। प्राचीन धवला आदि ग्रन्थोंका जिनका समझना आजके विद्वानोंके लिये कठिन था हिन्दी रूपान्तर करके उन्हें जनसाधारणके बोधगम्य बना दिया यह आपकी बहुत बड़ी देन है। इसके अतिरिक्त आपने और भी अनेक ग्रन्थोंकी सरल और सुबोध टीकाएं लिखी हैं जिनका पठन-पाठन आज सर्वत्र जैन समाजमें प्रचलित है। आपके इस सेवा कार्यका समाजपर जो उपकार है उसके परिवर्तनमें समाजके द्वारा आपको अबतक उतना सम्मान नहीं मिला जितना मिलना चाहिये था। यह पहला ही अवसर है कि आदरणीय पंडित जीको समाजकी तरफसे अभिनन्दन ग्रन्थ समर्पित किया जा रहा है। पंडितजी गुरु गोपालदासजीकी तीसरी पीढ़ीके विद्वान् हैं जब कि मैं चौथी पीढ़ीसे सम्बन्धित हूँ। अपनी इस किशोर अवस्थासे ही मैं पंडितजीसे परिचित हूँ। लेकिन सन् १९४६ में जब मैं बनारस पहुँचा तब मेरा उनसे विशेष परिचय हुआ । उन दिनों दिगम्बर जैन संघ मथुराका साहित्य विभाग, वाराणसी में पं. कैलाशचन्द्रजीके निर्देशनमें चल रहा था जिसके पण्डितजी प्रमख स्तम्भ थे। वहाँ मैं मोक्षप्रकाशके हिन्दी (खड़ी बोली) में रूपान्तरित कर रहा था। मैंने देखा कि पंडितजी जैसे उच्चकोटिके विद्वान् है वैसे ही वे बड़े मिलनसार विनम्र स्वभावके व्यक्ति हैं। दुसरेके सुख दुःखमें सम्मिलित होना उनका सहज स्वभाव है। वे जब कभी आप बीती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012004
Book TitleFulchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain, Kailashchandra Shastri
PublisherSiddhantacharya Pt Fulchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Varanasi
Publication Year1985
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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