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________________ ७८ : श्री महावीर जैन विद्यालय सुवर्णमहोत्सव ग्रन्थ इनकी रचना ५५५५ ग्रंथाग्र प्रमाण है। चन्द्रसूरिके शिष्य हरिभद्रकी कृति तीन अध्यायोंमें ९००० ग्रन्थान प्रमाण है। भुवनतुंगसूरिका ग्रन्थ ५०० ग्रंथ प्रमाण तथा एक और अनाम कृति १०५ ग्रंथाग्र प्रमाण उपलब्ध हैं। अपभ्रंशमें जिनप्रभसूरिकी ५० पद्यप्रमाण रचना है। जयमिश्रहलका भी मल्लिनाथ पुराण उपलब्ध है। संस्कृतमें प्रद्युम्न सूरिके शिष्य विनयचन्द्रका मलिनाथ चरित ४२५० ग्रंथाग्र प्रमाण ८ सोमें निबद्ध है। यह सं० १४७४ के आसपासकी रचना है। सकलकीर्ति (१५वीं शती) भी मलिनाथ पुराणके रचयिता है। अन्य ग्रन्थकारोंमें शुभवर्धन, विजयसूरि, प्रभाचन्द्र व नागचन्द्र स्मरणीय हैं। बीसवें तीर्थकर पर श्री चन्द्रसूरिने प्राकृत में ११००० गाथा-प्रमाण मुनिसुव्रतनाथचरित सं० ११९३में रचा था। पद्मप्रभकी संस्कृत कृति (सं. १२९४) ५५५५ ग्रन्थान प्रमाण तथा मुनिरत्नसूरिकी रचना २३ सगोंमें निबद्ध करीब ७००० ग्रंथाग्र प्रमाण हैं। कृष्णदासका मुनिसुव्रतपुराण (सं० १६८१) २३ सीमें समाप्त हुआ तथा अर्हद्दासका १० सर्गोमें जिसका अपर नाम काव्यरत्न है। केशवसेन, सुरेन्द्रकीर्ति तथा हरिषेण अन्य पुराणकार गिने गये हैं। इक्कीसवें जिन संबंधी नेमिनाथपुराण सकलकीर्तिकी संस्कृत रचना है। अन्य नमिचरितोंके उल्लेख मात्र मिलते हैं। बाईसवें तीर्थकर नेमिनाथके चरितोंकी विपुलता पायी जाती है। प्राकृत रचनाओंमें जिनेश्वरसूरिका । नेमिनाथ चरित सं०११७५की कृति है। रत्नप्रभसूरिकी गद्यपद्यमय रचना १३६०० ग्रन्थान प्रमाण ६ अध्यायोंमें विभक्त है। इसका रचना-काल वि० सं० १२३३ है। तीसरी रचना मलधारी हेमचन्द्र(१२वीं शती)की ५१०० ग्रन्थाग्र प्रमाण है। संस्कृतमें प्रथम नंबर सूराचार्यका आता है जिन्होंने सं० १०९०में नेमिनाथचरित रचा। यह द्विसन्धानात्मक है और तीर्थंकर ऋषभ पर भी इसका अर्थ घटित होता है। ऐसा ही द्वितीय ग्रन्थ अजितदेवके शिष्य हेमचन्द्रसूरिका है जिसका नाम नेमिद्विसन्धान काव्य है। सोमके पुत्र वाग्भट(१२वीं शती)का नेमिनिर्वाणकाव्य १५ सोंमें विभक्त है। यह महाकाव्य शैलीकी एक उत्कृष्ट रचना है। उदयप्रभसूरिकी २१०० ग्रन्थाग्र प्रमाण रचना सं० १२९९के आसपासकी है। उपाध्याय कीर्तिराज (सं०१४९५)का नेमिनाथ चरित १२ सोंमें निबद्ध है तथा ब्रह्म नेमिदत्त(सं० १५७५)का नेमिनाथ पुराण १६ अध्यायोंमें। गुणविजयकृत चरित (सं० १६६८) गद्यात्मक है तथा १३ अध्यायोंमें विभक्त है। संगनके पुत्र विक्रमका नेमिदूतकाव्य एक विशेष कलाकृति है जिसमें मेघदूत के आधार पर समस्यापूर्ति की गयी है। तिलकाचार्यकी रचना ३५०० ग्रन्थाग्र प्रमाण है। भोजसागर, नरसिंह, हरिषेण और मंगरसकी भी कृतियां मिलती हैं। अपभ्रंशमें चन्द्रसूरिके शिष्य हरिभद्रका नेमिणाहचरिउ (सं० १२१६) ८०३२ ग्रन्थान प्रमाण पाया जाता है। महाकवि दामोदरकी रचना सं० १२८७की है। लक्ष्मण देवकी कृति सं० १५१०के पूर्वकी है तथा वह १३ कडवक प्रमाण ४ संघियोंमें निबद्ध है। तेईसवें जिन संबंधी देवभद्रगणिका प्राकृतमें रचा गया पार्श्वनाथचरित (सं० ११६८) गद्य-पद्य मिश्रित है तथा ९००० ग्रन्थाग्र प्रमाण ५ उद्देशोंमें विभक्त है। नागदेवने पार्श्वनाथपुराण रचा था तथा एक अनाम कृति पार्श्वनाथदशभवचरित नामक २५६४ गाथा प्रमाण मिलती है। संस्कृतमें प्राचीन रचना जिनसेनकृत पार्श्वभ्युदय (१०वीं शती) है जो एक उत्तम काव्य है। इसमें मेघदूतके पद्योंका समावेश किया गया है। वादिराजका पार्श्वनाथपुराण (सं० १०८२) भी उपलब्ध है। गुणभद्रसूरिके शिष्य सर्वानन्दसूरिकी रचना करीब १२वीं शताब्दीकी है। माणिक्यचन्द्रका पार्श्वनाथचरित (सं० १२७६) १० सर्गों में निबद्ध ५२७८ ग्रन्थाग्र प्रमाण है तथा गुणरत्नके शिष्य सर्वानन्द(सं० १२९१)का ५ सगामें विभक्त है। भावदेवसूरिने सं० १४१२ में ६४०० ग्रन्थान प्रमाण चरित लिखा था। विनयचन्द्रकी रचना (१५वीं शती) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012002
Book TitleMahavira Jain Vidyalay Suvarna Mahotsav Granth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Vidyalaya Mumbai
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1968
Total Pages950
LanguageGujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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