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________________ जैन पुराण साहित्य : ७७ टीकाकार रत्नचन्द्रने उसमें आये हुए दो पद्यों पर टीका करते हुए बतलाया है कि ये पद्य एक प्राकृत रचना पुष्पदन्तचरितमेंसे लिये गये हैं। दसवें तीर्थकर शीतलनाथके चरितोंके बारेमें सिर्फ उल्लेख ही प्राप्त हैं। ग्यारहवें जिन पर श्रेयांसचरित जिनदेवके शिष्य हरिभद्रने सं. ११७२में तथा अजितसिंहसूरिके शिष्य देवभद्रने ११००० ग्रन्थान प्रमाण प्राकृतमें रचे थे। संस्कृतमें मानतुंग(सं० १३३२)की कृति प्राप्त है। सुरेन्द्रकीर्तिके श्रेयांसपुराणका भी उल्लेख आता है। बारहवें जिन पर वासुपूज्यचरित प्राकृतमें ८००० ग्रन्थाग्र प्रमाण चन्द्रप्रभकी रचना है तथा संस्कृत में वर्द्धमानसूरि(सं० १२९९)की करीब ६००० ग्रन्थान प्रमाण। तेरहवें तीर्थंकरका विमलचरित प्राकृतमें रचे जानेका उल्लेख आता है। संस्कृत में ज्ञानसागरने खंभातमें सं० १५१७में ५६५० ग्रन्थान प्रमाण पांच सोमें विमलनाथचरित रचा था। कृष्णदासका विमलनाथपुराण १० सर्गों में विभक्त है तथा २३०० श्लोक प्रमाण है। इन्द्रहंसगणिने सं० १५७८में संस्कृतमें विमलचरित रचा था। रत्ननन्दिका भी विमलनाथ-पुराण मिलता है। चौदहवें जिन पर प्राकृतमें अनन्तनाथ चरितके लेखक आम्रदेवके शिष्य नेमिचन्द्रसूरि है जिन्होंने सं० १२१३में १२०० गाथा प्रमाण अपना ग्रन्थ लिखा था। वासवसेन भी अनन्तनाथपुराणके रचयिता माने जाते हैं। - पन्द्रहवें तीर्थकर धर्मनाथ पर प्राकृतरचनाका उल्लेख मात्र है। हरिचन्द्रकृत एक उत्कृष्ट संस्कृत काव्य है जो २१ सौमें निबद्ध है। इसका नाम धर्मशर्माभ्युदय काव्य है जो ११वी १२वीं शतीकी रचना मानी जाती है। इस पर शिशुपालवध, गउडवहो और नैषधीय चरितका प्रभाव स्पष्ट है। नेमिचन्द्र (सं० १२१६) और सकलकीर्ति(१५वीं शती)की रचनाओं के भी उल्लेख मिलते हैं । सोलहवें तीर्थकर शान्तिनाथके जीवन संबंधी कई चरित रचे गये प्रतीत होते हैं। प्राकृतमें पहली कृति देवचन्द्रसूरि (सं० ११६०)की मिलती है। यह १२००० ग्रन्थान प्रमाण है। मुनिभद्रकी रचना सं० १४१०की है। सोमप्रभसूरिकी भी प्राकृत रचना मिलती है। अपभ्रंशमें महीचन्द्रने दिल्लीमें सं० १५८७में संतिणाहचरिउ रचा था। संस्कृतमें असग(११वीं शती)का शान्तिनाथपुराण १६ सगों में निबद्ध है। इनका एक लघु शान्तिपुराण भी मिलता है। अजितप्रभसूरि(सं० १३०७)का शान्तिनाथ-चरित ६ सर्गों में विभक्त ५००० श्लोक प्रमाण है। मुनि देवसूरिकी कृति (सं० १३२२) देवचन्द्रसूरिकी प्राकृत रचना पर आधारित मानी जाती है। माणिक्यचन्द्रकी रचना (१३वीं शती) ८ स!में करीब ६००० ग्रन्थान प्रमाण मिलती है। सकलकीर्ति (१५वीं शती) तथा श्रीभूषण (सं० १६५९)के भी शान्तिनाथ-पुराण उपलब्ध हैं। प्रथम १६ सर्ग प्रमाण है। कनकप्रभकी रचना ४८५ तथा रत्नशेखरसूरिकी करीब ७००० ग्रन्थान प्रमाण प्राप्त हैं। गद्यमय रचनाकारोंमें भावचन्द्र (सं० १५३५) तथा उदयसागर उल्लेखनीय हैं। अन्य ग्रन्थकारोंमें ज्ञानसागर, हर्षभूषणगणि, वत्सराज, शान्तिकीर्ति, गुणसेन, ब्रह्मदेव, ब्रह्मजयसागर इत्यादि हैं। मेघविजयका शान्तिनाथचरित तो एक पादपति काव्य है जो नैषधचरितके पादों के आधारसे शांतिनाथके जीवनचरितका वर्णन करता है। सत्तरहवें कुन्थुनाथके चरितकारोंमें पद्मप्रभ अथवा विबुधप्रभसूरि(१३वीं शती)का नाम आता है जिन्होंने अपनी रचना संस्कृतमें की थी। प्राकृतमें भी किसीने ग्रन्थ रचा था और एक अनाम चरित भंडारमें ही होनेका उल्लेख है। अठारहवें अरनाथ पर प्राकृत और संस्कृतमें रचनाएँ की गयी थी परंतु अभी उपलब्ध नहीं हैं। उन्नीसवें जिन मलिनाथके प्राकृत चरितकारोंमें जिनेश्वरसूरि(सं० ११७५)का नाम आता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012002
Book TitleMahavira Jain Vidyalay Suvarna Mahotsav Granth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Vidyalaya Mumbai
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1968
Total Pages950
LanguageGujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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