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________________ जैन पुराण साहित्य के० ऋषभचन्द्र जिस प्रकार प्रारंभ से ही जिनवाणी (अर्हद्वचन) के चार विभाग किये गये हैं उसी प्रकार जैन साहित्यके भी । ये विभाग हैं - कथा, गणित, दर्शन और चारित्र संबंधी । श्वेताम्बर इनका धर्मकथानुयोग, गणितानुयोग, द्रव्यानुयोग तथा चरणानुयोगके नामसे और दिगम्बर प्रथमानुयोग, करणानुयोग, द्रव्यानुयोग तथा चरणानुयोगके नामसे परिचय देते हैं। इन विभागों में कथा - साहित्यको, जिसके अपर नाम धर्मकथानुयोग तथा प्रथमानुयोग हैं, प्रथम स्थान मिला है । इस अनुयोगको इतनी बड़ी महत्ता इसलिए दी गयी है कि इसके द्वारा ही साधारण व सामान्य जनतामें धर्मके बीज सरलता व विशाल पैमाने पर पनपाये जा सकते हैं । कथा एक ऐसा सरल उपाय है जिसका प्रभाव तुरन्त ही साधारण जन पर पड़ता है, अतः इसको इतना महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है । इसी कथानुयोग अथवा कथा - साहित्यका एक अंग पुराणसाहित्य है जिसकी चर्चा यहाँ पर की जा रही है । Jain Education International जिनसेनाचार्य ने अपने महापुराण (आदिपुराण) में पुराणकी व्याख्या 'पुरातनं पुराणं स्यात् 'से की है । आगे यह भी बतलाया है कि वे अपने ग्रन्थमें तिरसठ शलाका पुरुषोंका पुराण कह रहे हैं । अन्य आचार्योंके मतका निर्देश करते हुए वे बतलाते हैं कि कोई कोई तीर्थकरों के ही चौबीस पुराण मानते हैं क्योंकि उनमें अन्य शलाका पुरुषों (चक्रवर्त्ती, बलदेव, वासुदेव व प्रतिवासुदेव) का भी समावेश हो जाता है और इन सभी पुराणोंका जिसमें संग्रह हो वह महापुराण कहलाता है । कहनेका तात्पर्य यह कि जिसमें एक शलाका पुरुषका वर्णन हो वह पुराण तथा जिसमें अनेक शलाका पुरुषोंका वर्णन हो वह महापुराण कहलाता है । जिनसेनाचार्य आगे बतलाते हैं कि उनके ग्रन्थमें जिस धर्मका वर्णन है उसके सात अंग है- द्रव्य, क्षेत्र, तीर्थ, काल, भाव, महाफल और प्रकृत । तात्पर्य यह कि पुराण में षद्रव्य, सृष्टि, तीर्थस्थापना, पूर्व और भविष्य जन्म, नैतिक और धार्मिक उपदेश, पुण्यपापके फल और वर्णनीय कथावस्तु अथवा सत्पुरुष के चरितका वर्णन होता है। जैन पुराणोंमें काव्यमय शैलीका भी समावेश हो गया है। यह तत्कालीन प्रभाव ही प्रतीत होता है । अन्यथा जिनसेनाचार्यकी महाकाव्यकी परिभाषा में पुराणके तत्त्व भी शामिल नहीं होते । वे महाकाव्य के लक्षण इस प्रकार बतलाते हैं : For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012002
Book TitleMahavira Jain Vidyalay Suvarna Mahotsav Granth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Vidyalaya Mumbai
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1968
Total Pages950
LanguageGujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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