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________________ २६ : श्री महावीर जैन विद्यालय सुवर्णमहोत्सव ग्रन्थ श्रीजिनपद्मसूरिजीके समय तकका वृतान्त तत्कालीन अन्य विद्वानों द्वारा लिखा गया था जिसकी एक मात्र प्रति श्रीक्षमाकल्याणजीके भंडारमें मिली थी, जो अत्यन्त प्रामाणिक और महत्त्वपूर्ण है। इसके बादका इतिवृत्त विभिन्न साधनसामग्रीसे संकलित हुआ जिसमें कितनीक सामग्री तत्कालीन और कितनी ही बहत बादकी लिखी हुई पट्टावलियोंसे उपाध्याय क्षमाकल्याणजीकृत पट्टावली के अनुवाद रूपमें उपर्युक्त इतिहासके दसरे खंड में दिया है जो प्रकाशित है। सं० १४३०के महाविज्ञप्ति लेखकी उपलब्धिसे बहतसी प्रामाणिक और अज्ञात सामग्री प्रकाशमें आगई एवं कुछ पट्टाभिषेक रासादिसे उपलब्धि हो गई पर श्रीजिनलब्धिसूरिजी आदि के विषयका इतिहास अंधकारमें ही था। रास आदि ऐतिहासिक सामग्री हमने २७ वर्ष पूर्व ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह में प्रकाशित की थी। उसके बाद हमारी खोज निरंतर चालू है, फलतः बहुतसी महत्त्वपूर्ण ऐ० रचनाएं हमारे यहाँ संगृहीत हैं। बीकानेर वृहद्ज्ञानभण्डारके महिमाभक्ति भंडारमें हमें लगभग ३० वर्ष पूर्व मुनि महिमाभक्ति लिखित एक सूची मिली थी जो सं० १४९० लि. जिनभद्रसूरि स्वाध्याय पुस्तिकाकी थी। इसमें प्रस्तुत प्रति अजीमगंजकी बड़ी पोसालमें होनेका यह उल्लेख था: "सं० १४९० वर्षे मार्गसिर सुदि ७ रे लिख्योड़े पुस्तक रो बीजक सं० १९२४ रा मि। ज्येष्ट सुदि प्रथम १३ श्री अजीमगंजे लि.। पं० महिमाभक्ति मुनिना। या परति अजीमगंज में भंडार में छै बड़ी पोसालमें।" इस सूची के अनुसार हमें कई अज्ञात प्राचीन कृतियोंकी जानकारी प्राप्त हुई और वे कृतियां प्राप्त करने के लिए श्रीपूज्यजी महाराज श्रीजिनचारित्रसूरिजी, श्री अमरचंदजी बोथरा और अंतमें श्रीपूज्यजी श्रीजिनविजयेन्द्रसूरिजीको प्रेरित करते रहे। हम स्वयं भी वहां जाकर ज्ञानभंडार देख चुके पर प्राप्त न हो सकी। इसके लिए सामयिक पत्रों व पुस्तकादिमें भी लिख कर खोजकी आवश्यकता व्यक्त की गई पर गत ३० वर्षों में हमारी आशा फलवती नहीं हुई। अभी कलकत्तामें जैनभवनकी ओरसे श्री बद्रीदासजीके बगीचे में जैन इन्फोर्मेशन ब्यूरोके उद्घाटन अवसर पर आयोजित प्रदर्शनी के लिए श्री मोतीचंदजी बोथरा पांच प्रतियाँ' लाये और मात्र एक दिन प्रदर्शित हो कर वापस भेजनेके पूर्व लायी हुई प्रतियोंको मुझे दिखा देना उचित समझा। मुझे रातमें सूचना मिलते ही तत्काल वहां जाकर प्रतियां ले आया और मुझे उन प्रतियोंमें उस स्वाध्याय पुस्तिकाके मिल जानेका अपार हर्ष हुआ जिसे हम गत २५-३० वर्षोंसे खोज रहे थे। इस स्वाध्याय पुस्तिकामें हमें खरतर गच्छ इतिहास पर महत्त्वपूर्ण प्रकाश डालने वाली निम्नोक्त कृतियां मिली हैं, जो अद्यावधि अप्रकाशित हैं। १ श्रीजिनपतिसूरि सुगुरु पंचाशिका गा० ५५ २ श्रीजिनेश्वरसूरि चतुःसप्ततिका गा०७४ ३ श्रीजिनप्रबोधसूरि चतुःसप्ततिका गा० ७४ उ. विवेकसमुद्र ४ श्रीजिनकुशलसूरि-चहुत्तरी गा०७४ श्रीतरुणप्रभाचार्य ५ श्रीजिनलब्धिसूरि-चहुत्तरी गा० ७४ श्रीतरुणप्रभाचार्य ६ श्रीजिनलब्धिसूरि स्तूपनमस्कार गा० ४ ७ श्रीजिनलब्धिसूरि नागपुर स्तूपनमस्कार गा० ८ १ अजीमगंजसे लाई हुई ५ प्रतियाँमें ३ प्रतियाँ कल्पसूत्रकी थी, जिनमें १ स्वर्णाक्षरी और १ रौप्याक्षरी भी है। चौथी प्रति हेमहंसकृत घडावश्यक बालावबोध और पांचवीं प्रस्तुत स्वाध्याय पुस्तिका है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012002
Book TitleMahavira Jain Vidyalay Suvarna Mahotsav Granth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Vidyalaya Mumbai
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1968
Total Pages950
LanguageGujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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