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________________ खरतर गच्छके आचार्यों सम्बन्धी कतिपय अज्ञात ऐतिहासिक रचनाएँ अगरचंद नाहटा भँवरलाल नाहटा जैन धर्म के अनेक संप्रदाय व गच्छ हैं, उनमें श्वे० जैन संघमें खरतर गच्छ और तपा गच्छ मुख्य हैं। मध्यकाल में और भी कई गच्छ बडे प्रभावशाली रहे है पर आज वे प्रायः नामशेष हो चुके हैं । खरतर गच्छका इतिहास वस्तुतः अत्यन्त गौरवपूर्ण और गत एक हजार वर्षके जैन समाजके इतिहासका एक महत्त्वपूर्ण अंग है । इसके महान ज्योतिर्धरोंने अपने विशिष्ट चारित्र के बल पर शिथिलाचार के गर्तमें गिरते हुए जैन शासनको चैत्यवासके घनान्धकार से निकालकर उन्नतिपथारूढ बनाया । श्रीवर्द्धमानसूरिजीसे लगाकर श्री जिनपतिसूरिजी तकका काल इसी महान् शासन सेवासे आप्लावित है। उन्होंने जैन समाजको उच्च चारित्र सौरभ से सुरभित किया, आगमोंकी टीकाएं बनाई, प्रकरण ग्रन्थों एवं विविध विषयक उच्च कोटिके वाङ्मयसे साहित्य भण्डारको भरपूर किया । राजसभाओं में शास्त्रार्थ किये, राजाओं एवं जन साधारणको प्रतिबोध देकर लाखों नये जैन बनाये, आशातनाओंको दूर करने के लिए स्थान स्थान पर विधिचैत्य स्थापित किये और भव्यजीवोंको मोक्षमार्गमें लगाकर उनका कल्याण साधन किया। इन सब बातों पर प्रकाश डालनेवाली प्रामाणिक सामग्री ज्यों ज्यों प्रकाशमें आ रही है, उसका परिशीलन करने पर पूर्वाचार्योंकी महान शासन सेवाओंके प्रति हृदय अटूट श्रद्धा और आनंदसे झुक जाता है। Jain Education International खरतर गच्छके इतिहास पर विशिष्ट प्रकाश डालनेवाली गुर्वावली सिंघी जैन ग्रन्थमालासे व उसका अनुवाद दादा जिनदत्तसूरि अष्टम शताब्दी महोत्सव समितिकी तरफसे ( खरतर गच्छका इतिहास प्रथम खंड रूपमें) प्रकाशित हो चुका है। इसमें वर्द्धमानसूरिजीसे ले कर जिनेश्वरसूरि (द्वितीय) तकका वृतान्त वादलब्धि सम्पन्न श्री जिनपतिसूरि के शिष्य जिनपालोपाध्याय द्वारा संकलित है, जिसका पूर्वाधार गणधर सार्धशतक बृहद् वृत्ति है जो सं० १२९५ में पूर्णदेवगण कथित वृद्ध सम्प्रदायानुसार श्री सुमति गणिने बनाई है। इसमें युगप्रधान श्री जिनदत्तसूरिजी तकका वृतान्त है। उनके पट्टधर मणिधारी जिनचंद्रसूरिजी से सं० १३०५ तकका वृतान्त जिनपालोपाध्यायने दिल्ली निवासी साधु साहुलिके पुत्र साह हेमाकी प्रार्थनासे लिखा और उसके पश्चात् सं० १३९३ तक अर्थात् दादा श्री जिनकुशलसूरिजी के पट्टधर For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012002
Book TitleMahavira Jain Vidyalay Suvarna Mahotsav Granth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Vidyalaya Mumbai
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1968
Total Pages950
LanguageGujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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