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________________ भगवान महावीर जीवन और दर्शन -पं. कैलाश चन्द्र शास्त्री सिद्धान्ताचार्य भगवान महावीर, जिनके निर्वाण | सकती, इस विश्वास के आधार पर अपना तीर्थंकरत्व सुनिश्चित जान की पच्चीसवीं रजत शती की पूर्ति के | वह मदमत्त हो उठा। और उसने अपने कर्मानुसार अनेक गतियों में अवसर पर सर्वत्र महोत्सव मनाये | भ्रमण किया। प्राचीन जैन आगमों में भगवान महावीर के पूर्वजन्मों का गये हैं, जैन धर्म के अन्तिम तीर्थकर | इतिवृत्त विस्तार से वर्णित है। एक बार वह सिंह की पर्याय में एक थे। और प्रथम तीर्थंकर भगवान | मृग पर झपटते हैं। उधर से जाते हए मुनिराज की दृष्टि उन पर ऋषभदेव थे। भगवान ऋषभदेव के | पड़ती है। अपने ज्ञान से यह जानकर कि यह जीव भविष्य में तीर्थंकर पुत्र मरत चक्रवर्ती थे। उन्हीं के नाम | होनेवाला है, वे उसे सम्बोधते हैं और यहीं से उनके जीवन का उत्थान से यह देश भारतवर्ष कहलाया। प्रारम्भ होता है, और अन्त में वह वैशाली के राजा सिद्धार्थ की रानी त्रिशला के गर्भ में अवतरित होकर महावीर के रूप में जन्म लेते हैं। जब भगवान ऋषभदेव को पूर्ण- और 28 वर्ष की युवावस्था में प्रबजित होकर 12 वर्ष तक कठोर ज्ञान की प्राप्ति हुई और उन्होंने अपने साधना के द्वारा पूर्ण ज्ञान प्राप्त करके तीर्थंकर होते हैं और सर्वत्र उपदेश में कहा कि मेरे पश्चात् तेईस | विहार करके अपने धर्म का उपदेश करते हैं । अन्त में बिहार प्रान्त के तीर्थकर और होंगे तो किसी ने प्रश्न | ही पावानगर में उनका निर्वाण होता है । उसी के उपलक्ष में जैन शास्त्रों किया-क्या यहाँ उपस्थित जन समु- | में दीपावली का त्यौहार प्रवर्तित होने का उल्लेख मिलता है। यतः दाय में कोई ऐसा व्यक्ति है जो | भगवान महावीर का निर्वाण अमावस्या को ब्राह्म मुहर्त में हुआ था, अतः भविष्य में तीर्थकर होनेवाला है ? | अन्धकार दूर करने के लिये दीपक जलाये गये थे। वे भगवान के ज्ञानभगवान ने उत्तर दिया-भरत का | दीप के प्रतीक भी थे। पुत्र मरीचि अन्तिम तीर्थंकर होगा। यह बात मरीचि ने भी सुनी। और भगवान महावीर का यह जीवनदर्शन उनके दर्शन का भी परिचाभगवान की वाणी अन्यथा नहीं हो यक है। भगवान महावीर के दर्शन में अवतारवाद को स्थान नहीं है २५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012001
Book TitleTirthankar Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Malav
PublisherJivaji Vishwavidyalaya Gwalior
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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