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________________ टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, ए-४, वापूनगर, जयपुर। दशवकालिक अति प्रचलित और अति व्यवहृत मूल्य-पु. सं.--पांच रुपया; पाकेट बुक-दो रुपया। आगम ग्रन्थ है। इसके दस अध्ययन हैं । विकाल में रचा जाने के कारण इसका नाम दसर्वकालिक रखा गया। प्रस्तुत पुस्तक में विद्वान लेखक डा. हुकुमचन्द्र ग्रन्थ के कर्ता श्रतकेवली शय्यंभव, रचनाकाल वीर संवत भारिल्ल ने तीर्थ कर महावीर के जीवन और सिद्धान्तों 72 के आसपास, तथा रचना स्थली "चम्पा" है। ग्रन्थ का संक्षिप्त किन्तु प्रामाणिक विवेचन प्रस्तुत किया है। के सम्पादक-विवेचक मुनि नथमलजी ने ग्रन्थ के दो खण्डों में विभक्त इस कृति के प्रथम खण्ड में बालक सम्पादन एवं विवेचन में कड़ा परिश्रम कर इसे और वर्तमान से भगवान महावीर के केवलज्ञानी होने तक उपयोगी एवं माननीय बना दिया है। आगम ग्रन्थों के से जीवन की संक्षिप्त रूपरेखा प्रस्तुत की गई है। प्रकाशन की श्रृंखला में यह ग्रन्थ एक महत्वपूर्ण द्वितीय खण्ड में उनके द्वारा प्रवर्तित सर्वोदय तीर्थ का करीबी. वर्णन है जिसमें उनके द्वारा प्रतिपादित मुक्ति मार्ग का सक्षिप्त विवेचन किया गया है। सम्यग्दर्शन के अन्तर्गत सप्त तत्व देवशास्त्र-गुरु, भेद-विज्ञान और आत्मानुभूति का मार्मिक चित्रण है, तो सम्यक ज्ञान के अन्तर्गत दशवकालिक और उत्तराध्ययन अनेकान्त, स्याद्वाद और प्रमाण नय का ताकिक विवेचन है। सम्यक चरित्र की भी प्रामाणिक विवेचना सम्पादक एवं अनुवादक - मुनि नवनमल, रहकी गई है। अन्त में उपसंहार शीर्षक से भगवान योगी-मुनि मीठालाल, एनि दुलहराज, वाचना प्रमुखमहावीर के सिद्धान्तों का आधुनिक सन्दर्भो में विवेचन आचार्य श्री तलसी । प्रकाशक-जैन विश्वभारती. किया गया है। लाडनू (राजस्थान) । मूल्य-पन्द्रह रुपया। ग्रन्थ के प्रस्तुत संस्करण में जैन आचार-गोचर और दार्शनिक विचारधारा के प्रतिनिधि दो महत्वपूर्ण दसवें आलियं आगम ग्रन्थों "दशवकालिक" और "उत्तराध्ययन" कर हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत किया है। जैन परम्परा में लेखक-मुनिश्री नथमल, वाचना-आचार्य श्री उनका अध्ययन, वाचन और मनन बहुलता से होता तुलसी । प्रकाशक-जैन विश्व भारती, लाडनू है। दशवकालिक में अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य (राजस्थान) । मूल्य-पिच्यासी रुपया। और अपरिग्रह आदि धर्म तत्वों और आचार-विचार का विस्तृत एवं सूक्ष्म विवेचन है तथा उत्तराध्ययन श्री जैन श्वेताम्बर तेरापन्थी महासभा, कलकत्ता के में वैराग्यपूर्ण कथा प्रसंगों के द्वारा धार्मिक जीवन द्वारा प्रकाशित पूर्वोक्त संस्करण की समाप्ति के बाद जैन का अति प्रभावशाली चित्राकन तथा तात्विक विचारों विश्वभारती ने दूसरे संस्करण के रूप में इस ग्रन्थ का का हृदय-ग्राही संग्रह किया है। पुस्तक का अनुवाद पुनः प्रकाशन किया है। ग्रन्थ में, मूलपाठ के साथ भाषा व शैली की दृष्टि से मूलता लिये हए है। संस्कृत छाया, हिन्दी अनुवाद और टिप्पणी का प्रकाशन कर इसे प्रथम संस्करण की अपेक्षा अधिक प्रामाणिक __आगम ग्रन्थों के प्रकाशन की श्रृंखला में मूल सूत्रों एवं सर्वाङ्गीण बनाने का प्रयास किया गया है। दशवकालिक और उत्तराध्ययन के प्रस्तुत हिन्दी संस्करण ३६८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012001
Book TitleTirthankar Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Malav
PublisherJivaji Vishwavidyalaya Gwalior
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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