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________________ की ताम्र प्रतिमाएँ प्रस्तुत की गई हैं। ये चैत्य एवं तीर्थंकर प्रतिमाएँ 10-11 वीं सदी के लगभग किसी समय की प्रतीत होती हैं 1120 नन्दीश्वर - कला की दृष्टि से इनमें ताम्रचैत्य, प्रमुखतः उल्लेखनीय है । यह नीचे वर्गाकारों तथा ऊपर पिरामिड के आकार का बना है। 1 फीट 6.75 इंच ऊँचे इस नन्दीश्वर चैत्य के वर्गाकारी आधार का क्षेत्रफल 6.25 वर्गइंच है। नीचे के भाग में तीन वर्गाकार मंजिलें हैं, तीसरे वर्ग के ऊपर पिरामिड आकार का आमालक युक्त गुम्बद बना है । प्रत्येक वर्ग के चारों कोने पर स्तम्भ बने हैं। इन वर्गाकारी मंजिलों की ऊँचाई नीचे से ऊपर की ओर क्रमशः कम है । इन वर्गों में चौबीस तीर्थ करों के चित्र हैं, सबसे नीचेवाले (तल) वर्ग में प्रत्येक और खड्गासन मुद्रा में तीन-तीन तीर्थकर इस प्रकार कुल बारह तीर्थंकर मुद्राएँ बनी हैं । इसके ऊपरवाले (मध्य) वर्ग पर प्रत्येक ओर पद्मासन (सम्प्रयँक) मुद्रा में दो-दो तीर्थ कर इस प्रकार आठ तीर्थंकर मुद्राएँ बनी हैं। यह वर्ग ऊँचाई में तल वर्ग की अपेक्षा कम ऊँचा है । इसके भी ऊपर सबसे कम ऊँचाई वाले तीसरे वर्ग में प्रत्येक ओर एक-एक इस प्रकार कुल चार तीर्थ कर मुद्राएँ अंकित हैं । इनमें तीर्थंकर पार्श्वनाथ की मुद्रा सभी से अलग प्रकार की होने के कारण आसानी से पहचानी जा सकती है । इसमें शीर्ष के ऊपर पंचफणी सर्प अंकित है । प्रत्येक तीर्थंकर मुद्रा के वक्ष पर प्रतीक स्वरूप श्रीवत्स अंकित है । 10. यह प्रतिमा जैन कास्मोलॉजी के अनुसार वर्णित द्वीपों में से एक द्वीप नन्दीश्वर द्वीप की प्रतीक स्वरूप है । इस द्वीप में 52 देवों एवं पवित्रात्माओं द्वारा जिन (तीर्थंकर) पूजा की जाने का जैन शास्त्रों में वर्णन प्राप्त होता है । तदनुसार यह द्वीप मन्दिरों, सभागृहों; नाट्यगृहों; सज्जित मंचों, सुन्दर स्तूपों, मूर्तियों एवं प्रतिमाओं, पवित्र चैत्य वृक्ष, इन्द्रध्वज तथा कमलयुक्त झील आदि से युक्त है। इन सभी मन्दिरों में अर्हत एवं जिन से सम्बन्धित पवित्र दिनों पर आठ दिवसीय पर्व मनाए जाते हैं । जैन धर्मावलम्बी इस वर्णन के अनुसार वर्ष में तीन बार आषाढ़, कार्तिक तथा फाल्गुन माहों में अष्टमी से पूर्णिमा तक आठ दिवसीय अष्टानिका पर्व मनाकर इस अवसर पर व्रत एवं पूजा आदि कते हैं । Jain Education International चैत्य पर अंकित शब्द क्षतिग्रस्त हो गए हैं। तल मंजिल पर एक ओर "....हीं ना . दा... धी" शब्द पढ़े गये हैं, इनके आधार पर कई पुरातत्व वेत्ताओं ने इसे 4-5वीं शती में निर्मित माना है, तथापि यह चैत्य 9 10वीं शती के लगभग या इससे पूर्व का अवश्य है । छठवें तीर्थंकर पद्मप्रभ - अन्य चार जिन प्रतिमाओं में एक छठवें तीर्थंकर पद्मप्रभ की है जिसकी ऊँचाई आधार सहित साढ़े पाँच इंच, तथा बिना आधार के साढ़े तीन इंच है । पद्मासन (सम्प्रयंक) अवस्था में बैठी इस मुद्रा के पृष्ठ भाग में नालन्दा कांस्य की शैली के चँवर बने हैं। आधार के "Jaina Images & Places of first class Importence", T. N. Ramachandran. (Presidential adress during the All India Jaina Sasana Conference 194; Held on the occasion of the 2500th Anniversary of the first Preaching of lord Mahavir Swami; Calcutta) Publisher-Hony. Secy. Vira Sasana Sangha, 82 Lower Chitpur Road, Calcutta. ३४१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012001
Book TitleTirthankar Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Malav
PublisherJivaji Vishwavidyalaya Gwalior
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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