SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 326
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रिक संरचना है। उसके मुह, दाँतों, हाथ की उंगलियों फोड़ डालो। हे अग्नि ! मांस भक्षण करनेवालों को एवं नाखूनों की बनावट के आधार पर प्रसिद्ध शरीर- अपने मुंह में रख लो।" अथर्ववेद, मनु स्मति और रचना शास्त्री एवं वैज्ञानिक उसे प्रण-कुशाचारी महाभारत में भी इसी प्रकार की धारणा व्यक्त की गई पशुओं की भाँति वनस्पत्याहारी अथवा शाकाहारी है। जैनागमों में कहा है-"किसी भी प्राणी का घात प्राणियों में गिनते हैं, माँसाहारी प्राणियों में नहीं। करना स्वयं अपना घात करना है। भोजन जिह्वा के लारेन्स, किंग्सफोर्ड, कुवियर, पॉशेट, वैशन, लिनियस स्वाद के लिये नहीं खाया जाता-शरीर की रक्षा के एवं लंकास्टर आदि अनेकों पाश्चात्य विशेषज्ञों का लिये खाया जाता है। मांस-भक्षण, मद्यपान, पशुमत है कि मात्र शाकाहार ही मनुष्य की प्रकृति पक्षियों का शिकार, चोरी, द्य त क्रीड़ा (जुआ खेलना) और उसकी शारीरिक संरचना के सर्वथा अनुकूल है। और व्यभिचार भारी पाप हैं जो मनुष्य की दुर्गति डा० अलेक्जेंडर हेग के अनुसार भेड़िया, चीता, सिंह करते हैं।" भगवान बुद्ध ने लंकावतार सूत्र में कहा आदि मांसाहारी पशुओं का पचनतंत्र मांसाहार को है--''माँसाहारी दूसरों के प्राणों को बलपूर्वक लेने के पचाकर विषाक्त द्रव्यों को शरीर से निष्कासित करने कारण डाकू समान हैं। जो व्यक्ति लोभवश दूसरों के को क्षमता रखता है, जबकि मनुष्य का पाचनतंत्र वसा प्राण हरते हैं तथा माँस के उत्पादन में धनादिक से योग नहीं कर सकता, न वह उस प्रकार मांस भोजन को देते हैं वे पापी हैं, दुष्ट हैं, घोर नरक में जाकर महाउपयुक्त रस-रक्त आदि सप्त धातुओं में भली प्रकार दुःख उठाते हैं। मैं मानता हूँ कि जो व्यक्ति दूसरे परिवर्तित कर सकता है। प्रो. लारेन्स ने मांसाहार के प्राणियों का मांस खाता है वह वास्तव में अपने पुत्र समर्थकों के इस तर्क का कि मांसाहारियों में शारीरिक का मांस खाता है।" बल और साहस अधिक होता है, खन्डन करते हुए कहा है कि -शाकाहार के साथ शारीरिक दौर्बल्य एवं ईसा मसीह ने कहा है-"देखो मैंने पृथ्वी पर सब कायरता का उतना ही कम सम्बन्ध है, जितना कि प्रकार की जड़ी-बूटियाँ तथा उनके बीज दिये हैं। साथ माँसाहार के साथ शारीरिक बल और साहस का। ही, तरह-तरह के फलों से लदे पेड़-पौधे भी दिये हैं वस्तुत: शाकाहारी की अपेक्षा माँसाहारी में सहनशक्ति, तथा उनके बीज भी। इन सब शाकाहारी पदार्थों को शौर्य और साहस कहीं अधिक कम होता है। पशु जगत खाओ। वे तुम्हारे लिये मांस से अधिक लाभप्रद हैं। तुम में हाथी, दरियाई घोड़ा, घोड़ा, ऊंट, गेंडा, बैल, महिष मेरे निकट सदैव एक पवित्र आत्मा बने रहोगे, यदि तुम आदि शुद्ध शाकाहारी जीव विश्व के विभिन्न मांसाहारी किसी का भी माँस न खाओ।" पैगम्बर मोहम्मद ने जीवों की अपेक्षा अत्यधिक शक्तिशाली, साहसी, भी कुरान शरीफ में कहा है--"किसी भी प्रकार का स्फूर्तियुक्त एवं दीर्घजीवी होते हैं । माँस ईश्वर को नहीं पहुँचता, न किमी का रत, ही। परन्तु जितनी कुछ दया पालोगे वही अल्लाताला को दार्शनिक पक्ष कबूल होगी।" हजरत अली ने और भी सशक्त रूप से कहा है कि - "हे इन्सान । पशु पक्षियों की दार्शनिक दृष्टि से तो शाकाहार का पक्ष और भी कब तु अपने पेट में मत बना।" गुरु नानक देव ने प्रबल है, विश्व के लगभग सभी दार्शनिकों एवं कहा हैमहापुरुषों ने शाकाहार का प्रबल समर्थन किया है। यही नहीं उसे जीवन में अपनाया भी है। ऋग्वेद में कहा "जे रक्त लगे कापड़े, जामे होवे पलित्त । है -- "हे मित्र ! जो पशु का मांस खाते हैं, उनका सिर जो रस पीवे मानुषा, तिन क्यों निर्मल चित्त ।।" २६२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012001
Book TitleTirthankar Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Malav
PublisherJivaji Vishwavidyalaya Gwalior
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy