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________________ प्रत्येक प्राणी को सर्वाधिक प्रिय उसका जीवन है। | करनेवाले विभिन्न पक्ष क्या हैं ? इस प्रसंग पर वह जीना चाहता है, और मुख्यतः जीने के ही लिये | दार्शनिकों, और वैज्ञानिकों के विचारों के आधार पर या यथासंभव सुखी जीवन जीने के हो लिये अपने | निश्चित रूप से यह कहा जा सकता है कि मनुष्य के जीवन के विविध उपक्रम करता है। कोई भी जीव आचरण को प्रभावित करनेवाला सर्वप्रमुख तत्व है, अनायास ही मरना नहीं चाहता । यही कारण है कि उसका आहार । मनुष्य का आहार, उसको बुद्धि, महापुरुषों और धर्मावतारों ने सभी को जीने के अधि- | विचार शक्ति, शारीरिक संरचना, व्यवहार और कार का समर्थन किया है। सभी महापुरुष हिंसा के संस्कारों पर अत्याधिक प्रभाव डालता है। यही कारण विरोधी रहे हैं, या यों भी कह सकते हैं कि ससार ने है कि दर्शनिकों ने इस पर तीब्र चितन और वैज्ञानिकों या मानव जाति ने उन्हीं को महापुरुष या धर्मावतार के ने गहन अनुसंधान किये हैं। उन्होंने मनुष्य के आहार रूप में मान्य किया है जिन्होंने हिंसा के कुचक्र से । को दो भागों में बांटा है-शाकाहार और दूसरा शाकाहार वैज्ञानिक एवं चिकित्साशास्त्रीय हटिकोण डा० पदमचन्द्र जैन निकलकर सभी जीवों के जीने के समान अधिकार का | माँसाहार । दार्शनिक और वैज्ञानिक दोनों दृष्टियों से समर्थन किया है, सुख और शान्ति का अहिंसक मार्ग | प्रथम प्रकार के आहार "शाकाहार" को मनुष्य का बताया है। सम्भवत: कोई भी धर्म या दर्शन ऐसा प्राकृतिक आहार माना जाता है, और मांसाहार को नहीं है, जिसमें जीव-हत्या या जीव भक्षण को उचित | अप्राकृतिक । इस प्रकार शाकाहार ही श्रेष्ठ आहार माना हो। सभी ने मनुष्य द्वारा हिसा को अप्राकृतिक माना गया है, इसकी श्रेष्ठता पर विचार करने के लिये माना है और प्राकृतिक रूप से जीने और दूसरों को जीने | इसके विभिन्न पक्षों पर विचार करना आवश्यक है - देने के लिये और उत्तम आचरण के लिये उपदेश दिये हैं । प्राकृतिक पक्ष जहाँ उत्तम आचरण की चर्चा आती है वहाँ हमारा प्राकृतिक दृष्टि से शाकाहार का पक्ष अत्याधिक ध्यान इस प्रसंग पर जाता है कि आचरण को निर्मित | सबल है । इसका सबसे बड़ा प्रमाण मनुप्य की शारी २६१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012001
Book TitleTirthankar Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Malav
PublisherJivaji Vishwavidyalaya Gwalior
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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