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________________ अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय कुलपति प्रिय महोदय, मुझे यह जानकर विशेष आनन्द है कि जीवाजी विश्वविद्यालय द्वारा भगवान महावीर के २५०० वें निर्वाण महोत्सव के अवसर पर आयोजित व्याख्यानमाला से सम्बन्धित शोधपत्रों एवं व्याख्यानों को एक स्मारिका के माध्यम से महोत्सव समिति द्वारा स्थायी स्वरूप प्रदान किया जा रहा है । यह सही है कि सभी धर्मों की उत्पत्ति इस संसार में मानव कल्याण के लिए ही हुई है । परन्तु यह भी एक कटु सत्य ही है कि स्वार्थ में लिप्त हो जाने के कारण मनुष्य धर्म के मूल तत्वों को बार-बार भूलता रहा है । भ्रमित मानव समाज ने भले ही सदैव धर्म-वृक्ष के पल्लवों को सींचा हो, अथवा उसके आवरण को सजाया हो, परन्तु, धर्म की जड़ों को बहुधा सुखाया ही है । अवतारी पुरुषों ने अपने जीवन, कृतित्व और शिक्षा के माध्यम से बार-बार इस पृथ्वी पर आकर भ्रमित समाज को प्रकाश, दिशा और प्रेरणा दी है, तथा समाज की डूबती नौका को अपने सबल हाथों द्वारा डूबने से बचाया है । भगवान महावीर ने भारतीय समाज का धर्म के मूल तत्वों की ओर ध्यान आकर्षित किया, हिसामय समाज में परम धर्म अहिंसा की पुनर्स्थापना की, तथा दीन-दुखियों को राहत और सहारा दिया । मुझे विश्वास है कि यह ऋणी भारतीय समाज उनके जीवन और आदर्शों से सदैव शिक्षा और प्रेरणा ग्रहण करता रहेगा । विद्वान वक्ताओं और लेखकों के विचारों का स्मारिका के माध्यम से स्थायीकरण निःसन्देह रूप से अनेकों पाठकों को आगे आनेवाले वर्षों में लाभ पहुँचाता रहेगा । Jain Education International रीवा (म. प्र. ) मैं इस सद्प्रयास की हृदय से सराहना करता हूँ, तथा प्रकाशन की पूर्ण सफलता की कामना करता हूँ । नारायण सिंह -संदेश कुलपति विश्वविद्यालय भवन, इन्दौर यह जानकर प्रसन्नता हुई कि जीवाजी विश्वविद्यालय भगवान महावीर के २५०० निर्वाण महोत्सव पर पठित शोधपत्रों को स्मारिका के रूप में प्रकाशित करने जा रहा है। मैं प्रयास की सफलता हेतु कामना करता हूँ । For Private & Personal Use Only पु. ग. देव कुलपति www.jainelibrary.org
SR No.012001
Book TitleTirthankar Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Malav
PublisherJivaji Vishwavidyalaya Gwalior
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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