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________________ बहुत ही उपेक्षित रहा है और बहुत से विद्वानों ने तो दृष्टि से बड़े महत्व का है । फलादेश विषयक यह ग्रन्थ यह गलत धारणा बना ली है कि जैन साहित्य, जैन- एक पारिभाषिक ग्रन्थ है । डॉ. अग्रवालजी ने इसे धर्म आदि के सम्बन्ध में हो होगा । सर्वजनोपयोगी कुषाण गुप्त युग की सन्धि काल का बतलाया है अर्थात साहित्य उसमें नहीं है । पर वास्तव में सर्वजनोपयोगी यह ग्रन्थ बहुत पुराना है इस तरह के न मालूम कितने जैन साहित्य बहुत बड़े परिमाण में प्राप्त है जिससे महत्वपूर्ण ग्रन्थ काल में समा गये हैं। लाभ उठाने पर भारतीय समाज का बहुत बड़ा उपकार होगा। बहुत-सी नई और महत्वपूर्ण जानकारी प्राकृत भाषा का दूसरा महत्वपूर्ण ग्रन्थ है संघ जैन साहित्य के अध्ययन से प्रकाश में आ सकेगी। दास गणि रचित 'वसूदेव हिन्डी' यह भी तीसरी और पांचवीं शताब्दी के बीच की रचना है । इसमें मुख्यतः प्राकृत भाषा का एक प्राचीन ग्रन्थ 'अंगविज्जा' तो श्रीकृष्ण के पिता वसुदेव के भ्रमण और कई मूनि पूण्य विजय जी संपादित प्राकृत ग्रन्थ परिषद से विवाहों का वर्णन है, पर इसमें प्रासंगिक रूप में अनेक प्रथम ग्रन्थाङ्क के रूप में सन् 1947 में प्रकाशित हुआ पौराणिक और लौकिक कथाओं का समावेश भी पाया है। 1 हजार श्लोक परिमित यह ग्रन्थ अपने विषय का जाता है । पाश्चात्य विद्वानों और डॉ. जगदीश चन्द्र सारे भारतीय साहित्य में एक ही ग्रन्थ है। इसमें इतनी जेन तथा डॉ. सांडेसरा आदि के अनुसार यह दृहद् कथा विपुल और विविध सांस्कृतिक सामग्री सुरक्षित है कि नामक लुप्त ग्रंथ की बहुत अंशों में पूर्ति करता है। समय के जैनाचार्य का किन-किन विषयों का कैसा सांस्कृतिक अध्ययन की दृष्टि से इसका बहत ही महत्व विशद शान था यह जानकर आश्चर्य होता है। डॉ.वासु- है । इस सम्बन्ध में 2 बड़े-बड़े शोध प्रबंध ग्रन्थ लिखे देव शरण अग्रवाल ने हिन्दी में और डा. मोतीचन्द्र जा चुके हैं । वसुदेव हिन्दी व मध्यम खण्ड भी असंख्य ने अंग्रेजी में इस ग्रन्थ का जो विवरण दिया है, उससे मिले हैं - प्राकृत भाषा का तीसरा उल्लेखनीय ग्रंथ इसका महत्व स्पष्ट हो जाता है । निवित्त शास्त्र के है-ऋषि जैन बौद्ध और वैदिक तीनों धर्मों के हैं। 8 प्रकारों में पहली 'अंग विद्या' है। अग्रवालजी ने अपने ढ़ग का यह एक ही ग्रंथ है। इसी तरह हरिभद्र लिखा है कि अंग विद्या क्या थी ? इसको बतानेवाला सूरि का धुर्ताख्यान भी प्राकृत भाषा का अनूठा नथ एकमात्र प्राचीन ग्रन्थ यही जैन साहित्य में अंग विज्जा है । ये दोनों ग्रथ. प्रकाशित हो चुके हैं । के नाम से बच गया है। भारतीय मुद्रा शास्त्र सम्बन्धी एक महत्वपूर्ण ग्रंथ यह अंग विज्जा नामक प्राचीन शास्त्र सांस्कृतिक दृष्टि है 'द्रव्य परीक्षा' जिसकी रचना अलाउद्दीन खिलजी से अति महत्वपूर्ण सामग्री से परिपूर्ण है। अंग विज्जा के कोषाध्यक्ष या भण्डारी खरतर गच्छीय जैन श्रावक के आधार पर वर्तमान प्राकृत कोषों में अनेक नये ठक्कुर फेरु' ने की है। उस समय की प्रचलित सभी शब्दों को जोड़ने की आवश्यकता है। मुनि पुण्य मुद्राओं के तील, माप मूल्य आदि की जो जानकारी विजयजी ने जो ग्रंथ के अन्त में शब्दकोश दिया है, उसमें इस ग्रंथ में दी गई है, वैसी और किसी भी नथ में हजारों नाम व शब्द आये हैं जिनमें से बहत सों का नहीं मिलती। ठक्कुर फेरु ने इसी तरह धापत्ति सही अर्थ बतलाना भी आज कठिन हो गया है। मुनि- वास्तुनुसार गणितसार, ज्योतिषसार रत्न परीक्षा आदि श्री ने लिखा है कि सामान्यतया प्राकृत वाकया में जिन महत्वपूर्ण नथ बनाये हैं । इन सबकी प्राचीन हस्तक्रियापदों का उल्लेख सग्रह नहीं हआ है, उनका संग्रह लिखित प्रति की खोज मैंने ही की. और मनि जिन इस ग्रन्थ में विपुलता से हुआ है जो प्राकृत समृद्धि की विजयजी द्वारा सभी ग्रंथों को एक संग्रह प्रथ में २२२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012001
Book TitleTirthankar Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Malav
PublisherJivaji Vishwavidyalaya Gwalior
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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