SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 227
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन चित्रकला श्रीमती उषा किरण जैन कला आत्माभिव्यक्ति का सन्दरतम स्वरूप है। चित्र अत्यन्त सजीव, रोचक और कलात्मक होते थे। इस धरा पर मानव जाति के विकास का इतिहास कला इनके पश्चात् कागजों पर भी चित्रांकन का कार्य के सुन्दरतम हाथों ही लिखा गया है । भारतीय संस्कृति प्रारम्भ हुआ। इस दृष्टि से बड़ी सम्पन्न है, भारतीय सभ्यता के उदय के साथ ही भारतीय कला का इतिहास भी प्रारम्भ जैन चित्रकला की प्राचीनता और उसके उदय के होता है । यों तो सिन्धु कालीन सभ्यता के काल में भी सम्बन्ध में इतिहासकारों के विभिन्न मत हैं। इस दिशा भारतीय चित्रकला के प्रमाण उपलब्ध होते हैं, परन्तु में अभी काफी शोध कार्य अपेक्षित है । अभी तक उपचित्रकला के आधार सामान्यतः प्राचीन मकान और लब्ध प्रमाणों के आधार पर यह अवश्य कहा जा वस्त्र आदि अधिक सुरक्षित न रहने के कारण, अधिक सकता है कि भारतीय चित्रकला के अभिन्न अंग के प्राचीन काल के प्रमाण कम ही प्राप्त होते हैं । ऐतिहा. रूप में यह परम्परा उसके उदय के समय से ही सिक दृष्टि से महावीर के बाद के काल से जन-सामान्य विद्यमान थी । वाचस्पति गैरोला के अनुसार" जैन कला की रुचि चित्रकला में निरन्तर बढने सम्बन्धी अनेक के प्राचीन अस्तित्व की खोज निकालने के लिए हमारा प्रमाण उपलब्ध हैं । इस काल से भारतीय चित्रकला का ध्यान इस ऐतिहासिक दिशा की ओर उन्मुख होता है पर्याप्त विकास और हआ, समयानुकल परिस्थितियों के तो हमें लगता है कि उसकी दयनीयता न केवल उसके अनुरूप उसमें विभिन्न परम्पराओं का भी विकास हुआ वेष विन्यास एवं भावविचारांकन के कारण विश्रत है. इनमें जैन चित्रकला की भी अपनी विशिष्ट परम्परा अपितु भारतीय चित्रकला के इतिहास में कागद पर रही। परम्परा के प्रारम्भिक काल में यदा-कदा भित्ति की गई चित्रकारी की दिशा में उसका पहला स्थान चित्रों के रूप में तथा तदुपरान्त व्यापक रूप से ताड- है । राजपूत परम्परा की भांति जैन कला ऐसी प्राचीन पत्रों, काष्ठ पटिकाओं के अनेक नमुने आज भी जैन परम्परा पर आधारित है, जो राजपूत कलम से प्राप्त भण्डारों में प्राप्य हैं । इनमें अधिकतर अपभ्रंश कालीन सबसे प्राचीन चित्रों से भी एक शताब्दी पहले की सिद्ध यूग के हैं। ताड-पत्रों, वस्त्रों और कागजों पर बने ये होती है।" 1. ारतीय चित्रकला; वाचस्पति गैरोला, (प्र. सं. 1963) पृष्ठ 138 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012001
Book TitleTirthankar Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Malav
PublisherJivaji Vishwavidyalaya Gwalior
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy