SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ थिा वहां वर्तमान में सामान्य जैन धर्मावलम्बियों स्वरूप को पूनः अधिकाधिक उजागर कर उसे जनके मध्य अहिंसा का तात्पर्य अब खानपान में जीवों सामान्य में प्रचलित किया जाकर मानव मात्र के की हिंसा न करने मात्र से समझा जाने लगा है। इस कल्याणार्थ एवं स्थायी विश्वशान्ति के प्रयोजनार्थ प्रकार उनके मध्य अहिंसा का स्वरूप रसोईघर तक ब्रह्मास्त्र के रूप में प्रयुक्त किया जावे। ही सिमटकर रह गया है। अपरिग्रह उनके मध्य मात्र दर्शनशास्त्र एवं व्याख्यानों का तत्व बनता जा सम्भवत इस विचार ने देश के बुद्धिजीवियों के रहा है। परिग्रह, लोभ, क्रोध, माया, मोह. द्वेष व एक बड़े वर्ग को प्रभावित किया, और यही कारण है घणा पर आधारित कर्मों में संलग्न व्यक्ति भी खानपान कि तीर्थ कर महावीर के निर्वाण के पच्चीससौ वे वर्ष में हिंसा से विरत रहने के आधार मात्र पर अपने को को उपयुक्त अवसर मानकर इस दिशा में राष्ट्रीय एवं पूर्ण अहिंसक मानकर महावीर के कदर अनुयायी होने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक रूप से प्रयास स्वरूप का दम भरते हैं और यह अपेक्षा करते हैं कि इसके विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन एवं योजनाओं का पालन मात्र के समक्ष उनके अन्य सभी दोष क्षम्य हैं। प्रारम्भ किया गया। अनेकों प्राचीन एवं दुर्लभ ग्रन्थों का प्रकाशन, जैन धर्म, दर्शन व संस्कृति के विभिन्न पक्षों ___यह भी दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जायगा कि आज से पर शोध कार्यों; संगोष्ठियों, व्याख्यान मालाओं का पच्चीस सौ वर्ष व तीर्थकर महावीर के जिस जीवन- प्रकाशन तथा इस दिशा में स्थायी रूप से तथा द्र तगति दर्शन ने ईश्वरवाद एवं अवतारवाद की धारणा के खण्डन । से कार्य, पच्चीस सौं वें निर्वाण महोत्सव वर्ष की और अपने वैज्ञानिक कर्म दर्शन के कारण, जन-सामान्य महत्वपूर्ण उपलब्धियां ही कही जावेंगी। में अत्याधिक लोकप्रियता प्राप्त की थी, वह अब जनेतर व्यक्तियों में अपने प्रसार के अभाव में पूर्वानुरूप जीवाजी विश्वविद्यालय द्वारा 6 नवम्बर 1975 से लोकप्रियता प्राप्त नहीं कर पा रहा है । “मनुष्य जन्म 10 नवम्बर 1975 तक आयोजित पांच दिवसीय से नहीं कम से महान है" का दर्शन देने वाले तीर्थकर व्याख्यानमाला. इस वर्ष के विभिन्न कार्यक्रमों की श्रृंखला महावीर के अनुयायी, जन्म के आधार पर जैन लिखने में एक कडी ही कही जाएगी, जिसमें विभिन्न महत्वपर्ण और कहने में संलग्न हो गए हैं। जिन दोषों और विषयों पर देश के कुछ दुने हए विद्वानों के शोधपूर्ण करीतियों के विरुद्ध तीर्थकर महावीर ने सामाजिक व्याख्यान आयोजित हए । अन्य कई विषयों पर क्रान्ति की प्रतिपादना की, उनमें से बहुत-सों की व्याख्यान साधनों तथा समय के अभाव में उस समय कालिमा ने जैन दर्शन और संस्कृति के मूल स्वरूप के चाहकर भी आयोजित न हो सके परन्त इस सम्बन्ध में एक बडे भाग को, प्रभावित कर जैन धर्मावलम्बियों में विशिष्ट सामग्री किस प्रकार प्रकाश में लायी जाए और प्रचलित वर्तमान आचरण पद्धति एवं मान्यताओं को व्याख्यानमाला में हए व्याख्यानों को लिपिवद्ध कर दूषित कर संकुचित कर दिया है। उनके प्रकाशन के द्वारा उन्हें किस प्रकार स्थायी स्वरूप प्रदान किया जा सके, यह बिचार निरन्तर ही मन को आज यह नितान्त आवश्यक है कि पच्चीस सौ वर्ष कचोटता रहा। व्याख्यानमाला हेतु प्रदेश शासन से पर्व तीर्थकर महावीर ने मानवमात्र के कल्याणार्थ जो प्राप्त अनुदान का अल्पांश ही शेष था, और उसके दर्शन दिया तथा तत्कालीन समाज में प्रचलित ___ सदुपयोग की समस्या भी बनी हुई थी। परन्तु इस अत्यल्प दुर्व्यवस्थाओं एवं मान्यताओं के विरुद्ध संघर्ष कर जिस राशि से व्याख्यानमाला में हुए दस व्याख्यानों का सामाजिक क्रान्ति का सूत्रपात किया उसके वास्तविक प्रकाशन भी सम्भव न था। इन सब परिस्थितियों में XX Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012001
Book TitleTirthankar Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Malav
PublisherJivaji Vishwavidyalaya Gwalior
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy