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________________ भारत की प्राचीनतम मूर्तियाँ सिन्धु घाटी में भारतीय कला का क्रमबद्ध इतिहास मौर्यकाल से मोहन जोदड़ो एवं हड़प्पा आदि स्थलों के उत्खनन से प्राप्त होता है । मौर्यकाल में मगध जैन धर्म का प्रमुख प्राप्त हुई हैं। इस सभ्यता में प्राप्त मोहन जोदड़ो के केन्द्र था। इस काल की तीर्थ कर की एक प्रतिमा पशुपति को यदि शैव धर्म को देव मानें तो हड़प्पा से लोहानीपुर से प्राप्त हुई है । मूर्ति के हाथ एवं मस्तक प्राप्त नग्न धड़ को दिगम्बर की खंडित मूर्ति मानने में टूट गये हैं। पर भी जंघा के पास से नहीं हैं। प्रतिमा आपत्ति नहीं होनी चाहिए। पर मौर्यकालीन उत्तम पालिश है। तंग वक्षस्थल तथा क्षीण शरीर जैनों के तपस्यारत शरीर का उत्तम नमूना सिन्धु सभ्यता के पशुओं में एक विशाल स्कंध है। पीठ प्राय. चौरस है, पीछे से काठ से प्रतीत होती युक्त वृषभ तथा एक जटाजूटधारी का अंकन है। . है। यह प्रतिमा किसी ताख में रखकर पूजार्थ प्रयुक्त वृषभ तथा एक जटाजूट के कारण इसे प्रथम जैन तीर्थ की जाती रही होगी। पार्श्वनाथ की एक कांस्य मूति जो कर आदिनाथ का अनुमान कर सकते हैं। हड़प्पा से , मौर्यकाल की मानी जाती है, कायोत्सर्गासन में है। प्राप्त मुद्रा क्रमांक 300, 317 एवं 318 में अंकित यह प्रतिमा बम्बई के संग्रहालय में संरक्षित है। प्रतिभा अजानलंबित. बाहद्वय सहित कायोत्सर्ग मद्रा में है । हडप्पा के अतिरिक्त उपरोक्त साक्ष्य हमें मोहनजोदड़ो में भी उपलब्ध होता है।' शुगकाल (185 ई. पू. से 72 ई. पू.) में जैन धर्म के अस्तित्व की द्योतक कतिपय प्रतिमायें उपलब्ध मथुरा एवं उदयगिरि-खण्डगिरि का पुरातत्व भी हुई. हैं । लखनऊ संग्रहालय' में संरक्षित शुगयुगीन जिन मूर्तियों के प्राचीन आस्तित्व को सिद्ध करते हैं। मथुरा से प्राप्त एक कपाट पर ऋषमदेव के सम्मुख जन स्तूप पर मूर्तियां अंकित रहती थीं । ईसा की अप्सरा नीलांजना का नृत्य चित्रित है । कपाट में अनेक पहली शताब्दी में मथुरा में वह प्राचीन स्तूप विद्यमान नरेशों सहित ऋषमदेव को बैठे हुए दिखाया गया है, था जो इस काल में देव-निर्मित समझा जाता था और नर्तकी का दक्षिण पैर नृत्य मुद्रा में उठा हुआ है तथा जिसे बुल्हर तथा स्मिथ ने भगवान पार्श्वनाथ के काल दक्षिण हाथ भी नृत्य की भंगिमया को प्रस्तुत कर का बताया था। है। संगत-राश निकट ही बैठे हुए हैं। . .. - - "2. स्टेडीज इन जैन आर्ट -यू. पी. शाह, चित्र फलक क्रमांक 1 3. सरवाइबल ऑफ दि हड़प्पा कल्चर-टी. जी. अमूथन, पृष्ठ 55 । 4. हडप्पा ग्रथ 1, वत्स एम. एस., पृष्ठ 129-130, फलक 931 5. बही, पृष्ठ 28, मार्शल-मोहन जोदड़ो एन्डं इन्डस बली सिविलाइजेशन, ग्रंथ 1, फलक 12, आकृति 13. 14. 18, 19, 22। 6. निहाररंजन रे-मौर्य एन्ड शुग आर्ट, चित्र फलक 28, काम्प्रिहेनसिव हिस्ट्री ऑफ इन्डिया -संपादक के. ए. नीलकंठशास्त्री, चित्र फलक 38, स्टेडीज इन जैन आर्ट-यू. पी शाह, चित्र फलक 1 क्रमांक 2, मौर्य साम्राज्य का इतिहास-सत्य केतु विद्यालंकार, चित्र फलक 10, भारतीय कला को बिहार की देन–विन्ध्येश्वरीप्रसाद सिंह, चित्र संख्या 301 7. स्टेडीज इन जैन आर्ट-यू. पी. शाह, चित्र फलक 2, आकृति । १८२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012001
Book TitleTirthankar Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Malav
PublisherJivaji Vishwavidyalaya Gwalior
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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