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________________ १५५ तीवमन्दज्ञाताज्ञातभावेवीर्याधिकरणविशेषेभ्यस्तद्विशेषः ।। अधिकरणं जीवाजीवाः ॥ ८॥ आधे संरम्भसमारम्भारम्भयोगकृतकारितानुमतकमायविशेषै-' स्त्रिनिनिश्चतुश्चैकशः ॥ ९॥ . निर्वर्तनानिक्षेपसंयोगनिसर्गा द्विचतुर्द्वित्रिभेदाः परम् ॥१०॥ तत्प्रदोषनिहवमात्सर्यान्तरायासादनोपघाता ज्ञानदर्शनावरणयोः ॥ ११ ॥ दुःखशोकतापाक्रन्दनवधपरिदेवनान्यात्मपरोभयस्थान्यसद्वेघस्य ॥ १२ ॥ भूतत्रत्यनुकम्पा दानं सरागसंयमादि योगः क्षान्तिः शौचमिति सद्वद्यस्य ॥ १२ ॥ केलिश्रुतसङ्घधर्मदेवावर्णवादो दर्शनमोहस्य ॥ १४ ॥ कषायोदयात्तीवात्मपरिणामश्चारित्रमोहस्य ॥ १५ ॥ टीका करते हैं तब उनके सामने 'इन्द्रिय'-पाठ प्रथम है। किन्तु सूत्र के भाष्य मे 'अवत' पाठ प्रथम है। सिद्धसेन को सूत्र और भाष्य की यह असंगति मालूम हुई है और उन्होने • इसको दूर करने की कोशिश भी की है। १ -भावाधिकरणवीर्यविश०- स. रा० श्लो० । २ भूतवत्यनुकम्पादानसरागसंयमादियोगः-स० रा० श्लो। ३ तीत्रपरि० -स. रा. लो० ।,
SR No.011620
Book TitleTattvarthadhigam Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1940
Total Pages588
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size14 MB
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