SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 87
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जय प्रथमप्रकाश. स्वादना फलनी प्राप्तिथती नथी श्रुतज्ञानवाला अंगारमर्दकाचार्य श्रादिक अजवी तथा कुलवीने पण जिनेश्वरें कहेला तत्वोमां रुचि नही होवाश्री, कहेलु फल मली शक्यु नथी, ते श्रद्धा उत्पन्न थवाना बे नेदो डे, एक स्वाजा विकरीतें, अने बीजो, गुरु आदिकथी. स्वानाविक एटले गुरु श्रादिकना उपदेशविना सम्यक् श्रद्धानुं जे कारण थाय ते. ते जे रीतें उत्पन्न थाय ने , ते बतावे . अनादि अनंत संसारमा भ्रमण करता प्रापिउने ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय तथा अंतराय, ए चार कमोंनी उत्कृष्टी त्रीश कोडाकोडी सागरोपमनी स्थिति बे, तथा नामकर्म अने गोत्रकर्मनी उत्कृष्टी वीश कोडाकोडी सागरोपमनी स्थिति . अने मोहनीयनी सीतेर कोडाकोडी सागरोपमनी स्थिति बे. तेमांथी पर्वतपरथी पडती नदीमा रहेला पथरना घोलावाना न्यायें, जेम प्रवाहमा अथडाय गोलाकार थाय तेप्रमाणे पोतानी मेले एक कोडाकोडी सागरोपममा पल्योपमने असंख्यातमें नागे उणी स्थिति राखी, बाकीनी स्थिति नाश पामते ते, यथा प्रवृत्तिकरण थवाथी ग्रंथि देशनी समी प्राणी आवे . उर्नेदएवो जे राग द्वेषनो परिणाम ते ग्रंथि कहेवाय .तथा ते काष्टादिकनी पेठे अत्यंत दृढ . ग्रंथीदेशसुधि श्रावेला प्राणी पण राग षयी प्रेराया थका, कर्मोनी उत्कृष्टी स्थितिने बांधता थका चारे गतिमा ब्रमण करनारा थाय बे. तेउमांथी पण जे जव्य, तथा नाविनमो ने, ते पोतानुं वीर्य फोरवीनें, अपूर्वकरण करते बते, जेम पंथी केटलोक मार्ग वटावीने उंची नूमिने उलंघे , तेम ते ते आकरी ग्रंथीने उलंघी जाय . ( तेनुं नाम अपूर्व करण कहेवाय बे.) त्रीजा अनिवृत्ति करणश्री अंतरकरण करते बते, वेदवा लायक मिथ्यात्वनां दलीआंने दूर करीने, जे अंतरमुहूर्त्तवाळु उपशम सम्यक्त्व पामे , ते निसर्गहेतुवादूं ( खानाविक ) सम्यकूनसान कहेवाय जे. गुरुना उपदेशना आलंबनयी सघला प्राणीउँने जेसम्यक्झान थाय बे, तेनुं नाम अधिगमश्रकान कहेवाय बे. ते सम्यग् दर्शन, यम, अने शांतताना औषध समान, ज्ञान अने चारित्रना बीजरूप, तथा तप अने श्रुतनो हेतु . चारित्र अने ज्ञान विनानुं पण दर्शन वखाणवा लायक बे, पण मिथ्यात्वरूपि फेरथी दूषित श्रयेला ज्ञान अने चारित्र वखाणवालायक नथी. ज्ञान अने चारित्रवि
SR No.011619
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages493
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy